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________________ ( २२ ) समालोचक – बड़े खेदकी बात है कि पंडितमन्य बेरदास एक देवद्रव्य जैसे शास्त्रसिद्ध तथा युक्तियुक्त शब्दकोभी नहीं समझता हुआ कहता है कि " देवद्रव्य शब्दज कई असंबद्ध अने विचित्र छे. " पाठकों को मालूम होकि देवद्रव्य शब्द असंबद्ध या विचित्र नहीं है, किन्तु बेचरदासका भाषणही असंबद्ध और विचित्र हैं। असंबद्ध यों है कि किसीभी सूत्रानुसारी जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण, देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण, हरिभद्रमूरिमहाराज, हेमचन्द्राचार्यमहाराज आदि परमप्रभावक आचायों के वचनोंसे वेचरदासका भाषण सम्बंध नहीं रखता है बल्कि उन प्रभावक पुरुषोंके वचनों से विरुद्ध है, और विचित्र इसरीतिसे है कि आजतक किसीनेमी ऐसे अक्षर किसीके मुँहसे नहीं सुने कि ' देवद्रव्य जैनागम में नहीं है ' । प्राचीनघोर पापकर्मके उदयसे प्रथम वेचरदासने ही अपने भाषण में इन अक्षरोंको सुनाया है इसलिए तमाम जैनसमाजको उसका भाषण विचित्र मालूम हुआ है । अब वेचर - दासको विचार करना चाहिए कि असंबद्धता और विचित्रता तुम्हारे भाषण में है या देवद्रव्य में ? अगर तुम किञ्चित् भी विचार करते तो ऐसा कभी नहीं कहते कि " जैनों जेने देवतरीके स्वीकारे छे तें राग, द्वेष, धन स्त्री वगेरेथी मुक्त - दरेक कषायथी हवे राग द्वेष विनाना प्रभुनुं द्रव्य शी रीते संभवी सोस है तुम्हारी अक्लपर, तुमने इतनाभी विचार नहीं किया कि. धूवं दाऊण, जिणवराणं' श्रीरायपसेणीसूत्र के इसअभिप्रायसे Jain Education International रहित होय छे, शके ? " अफ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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