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________________ (१७) से जिनलोकोंकि बुद्धि बिगड़गईहै परन्तु भद्रप्रकृति के कारण भाविशुभोदय है उन्हें जात्यपेक्षया बुद्धिहीन सेठ समझना चाहिए, और उनके शास्त्रशैलीविरुद्ध जो विचार हैं सो ही मूर्खदत्त नामका लड़का है। ये सब मिथ्यात्वोदयसे उन्नतिकी इच्छासे क्रिया करतेहैं परन्तु सम्यक्त्वभ्रष्ट करणी होनेसे अंधेरा ढोरहे हैं। अब जो सूत्रमार्गके अनुसारी पूर्वाचार्योंके प्रशंसक देवद्रव्यके रक्षक तमस्तरण नामक लेखके विरोधी महात्माओं का जो स्थिति स्थान ( आकाशप्रदेशात्मक ) है सो ज्ञानपुर है । और सूत्रानुसार प्ररूपणा करने वाले पूर्वोक्तविशेषण विशिष्ट जो महात्मा पुरुष हैं वेही जात्यपेक्षया बुद्धिशाली सेठ हैं, और उनकी प्राचीन महात्माओंके अनुकरणमें लगी रहनेवाली और सूत्रसिद्धमार्गका उपदेश देने वाली जो मति है वही सुमति है । इन प्राचीन रूढियोंके पालक जो कि प्राण चले जाय तो भी शुद्धमार्गके लोपक नहीं ऐसे अपने आत्मपितासे सुमतिमें भी अपूर्वगुण आये हुए थे । इस सुमतिकी शरण जिन जिन लोकोंने ली उन्होंका भवभवका अन्धेरा ढोना तो गया सो गया परन्तु हमेशा निवास करनेके लिए कैवल्यप्रकाशने अदृष्टपूर्व मोक्षधाम भी दिखा दिया । कदाग्राहियों के स्थानापन्न जो हठी नास्तिक लोक हैं उनमेंसे जिन मूढोंने बादशाहके स्थानापन्नपुण्यमहाराजोक हुक्मसे विरुद्ध होकर सुमतिके स्थानापन्न श्रीसिद्धसेन दिवाकर, देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण, हरिभद्धसरि, हेमचन्द्राचार्य और यशोविजय उपाध्याय जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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