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( १५ )
बादशाह ने कहा कि तब हमारे राजमहलका अंधेरा दूर करने के लिए जो दोसौ नोफरोंकों तन्खा देनी पड़ती है उस खर्चको मिटा दो तो अच्छा हो । सेठने सुमतिको वहीं बुलाकर बादशाह की प्रार्थना सुना दी। सुमति बादशाह के सन्मुख हाथ जोड़कर अर्ज करने लगी कि, हुजूर ! आपकी आज्ञानुसार मैं अकेली ही सब काम कर दुंगी फिक्र मत कीजिएगा । बारह घंटे के बाद आप देख लीजिएगा कि अगर अंधेरा रह जावे तो आप आज्ञा देंगे वह दंड उठानेको तय्यार हूं, बादशाहने सब नौकरोंको सीख दे दी। दूसरे दिन जब उठ कर देखा तो. अंधेरा नदारद ! ( नहीं पाया ) बादशाह विम्मित हो गया । असल में तो विस्मय • होने की तो कोई बात ही नहीं थी क्यों कि कुदरती नियमानुसार ही बारह घंटे के बाद अंधेरा दूर हो जाना ही चाहिए था, पर अज्ञानीयोंको तो आश्चर्यका ही कारण था, जैसे कि आजकल के नरकगामिनास्तिकों को सूत्रकी युक्तिमिद्ध बातों पर भी आश्चर्य होता है । बादशाहने सुमतिको हज़ारों रुपये भेट किये और शहर में ढंढेरा पिटवाया कि तमाम मनुष्य अंधेरा ढोनेरूप असह्यकष्ट से बचने के लिए सुमतिसे प्रार्थना करो और उसकी अद्भुत शक्तिका लाभ लेकर सुखी बनो। कितनेक मूढ मनुष्योंने इस ढंढेरेको स्वीकार नहीं किया, स्वीकार न करनेका कारण मात्र इतना ही था कि वे लोक इस बातका संभव नहीं मानते थे । शहरके बहुत से बुद्धिमान मनुष्य उन्हें समझाते रहे और कहते रहे कि ' हमने
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