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________________ (१४) पड़ता है, अन्यथा आजकलके नास्तिकोंकी लीलाके विषयमें 'एक ग्रंथ लिखा जासकता है । प्रिय पाठकगण ! जब इस प्रकार शहरमें बात फैलीकि “ बुद्धि हीन सेटके लड़के मूर्खदत्तकी स्त्री सुमति अपने विशाल महलके भीतरसे अकेली ही अंधेरेको बाहर निकालती है " तब जो पुण्यशाली लोक थे, उन्होंने सेठके घर जाकर प्रार्थना की कि अपनी चतुर वधू हमारे घर का भी अंधेरा दूर करे ऐसा प्रबंध करदीजिएगा । लोकोंकी इस प्रार्थनाको मानकर सेठने मुमतिको आज्ञा दी कि प्रियबेटी ! इन सबके घरोंका भी अंधेरा दूर करनेका तुमको यत्न करना चाहिए। सुमति अपने ससुरकी आज्ञानुसार उनलोकोंको तसल्ली देकर कहने लगी कि आप आनन्दसे सोजाईएगा, मैं अपनी अद्भुत शक्तिसे अपने घरमें ही रहकर तुम्हारे घरका सब अंधेरा दूर करदूंगी । जो जो लोक सुमतिकी बात मानकर सोगये, उनका सदैवके लिए अपने अज्ञानपरिश्रमका दुःख दूर हुआ और जिनलोकोंने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया और सोचा कि यह वात कदापि नहीं हो सकती, उन लोकोंने न तो उससे प्रार्थनाहीकी और न अंधेरा ढोनेरूप अंधक्रियाके घोरकष्टसे मुक्त हुए । जब सुमति की प्रशंसा बादशाहके कानों तक पहुँची तो उसने सेठको बुला कर कहा कि क्या यह बात सत्य है ! हमको मालूम हुआ है कि शहरके अनेक घरोंका अंधेरा तुम्हारे लड़केकी स्त्री अकेली ही निकालती है । सेठने अर्ज की कि जी हुजूर यह बात सच्च है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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