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________________ जीवन के दो बिंदु : नीति और अध्यात्म जीवन एकरस और धारावाही है । उसके टुकड़े नहीं किये जा सकते--- यह सच है, किन्तु स्थूल । सूक्ष्म सत्य की दृष्टि से जीवन चैतन्य के धागे में पिरोई हुई भिन्न-भिन्न मोतियों की माला है। उसकी प्रत्येक और प्रत्येक बार की प्रवृत्ति उसे खंड-खंड कर डालती है। देश और काल उसे जुड़ा नहीं रहने देते । स्थितियां अनुस्यूति को सहन नहीं करतीं । मोहन दो वर्ष की आयु में भी मोहन था और आज सौ वर्ष की आयु में भी मोहन है। उसके जीवन का धागा टूटा नहीं, वह टूट जाता तो मोहन क्या बनता, यह हमारी आँखों से परे की बात है । किन्तु मोहन का जीवन-धागा दो वर्ष की आयु मैं जैसा था वैसा ही सौ वर्ष की आयु में है— यह कौन मानेगा? वह बदला है और बदलता आया है । यह बदलने की बात भी सच है किन्तु एकान्ततः नहीं । बदलता वही है, जो पहले होता है और आगे भी । जो न आगे होता है और न पीछे, वह बीच में भी नहीं होता- “जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तस्स कुओ सिया ।" सापेक्षता ही जीवन है । भविष्य ही वर्तमान बनता है और वर्तमान ही अतीत । पहले से जो है वही वर्तमान में आता है, वही वर्तमान स्थित बन अतीत में परिणत हो जाता है | काल स्वयं अखंड है । वह अतीत, वर्तमान और भविष्य बनता है पर सापेक्ष होकर । जहां द्वैत है वहां परस्पर सापेक्षता आवश्यक है। एक को समझने के लिए दूसरे को समझना ही होगा। जहां एक ही होता है वहां समझने की स्थिति ही नहीं बनती। एक अनेक-सापेक्ष होता है और अनेक एक-सापेक्ष । इसीलिए एक को समझने के लिए अनेक को और अनेक को समझने के लिए एक को समझने की बात अपने आप आती है- “जो एग जाणई से सव्वं जाणई, जो सव्वं जाणई से एगं जाणई।" मोहन मित्र-गोष्ठी में बैठ आमोद-प्रमोद का जीवन बिताता है और दूकान में बैठ व्यापारिक उलझन में फंस गंभीर बन जाता है । आमोद-प्रमोद और गंभीरता की समझ मोहन-सापेक्ष है और मोहन की समझ आमोद-प्रमोद और गंभीरतासापेक्ष । यह सापेक्षता ही जीवन है । जीवन शरीर-सापेक्ष है । शरीर-मुक्त आत्मा में जीवन, मौत जैसा कुछ भी नहीं होता । तर्कवाद का मायाजाल जीवन से गुंथा हुआ है । जहां जीवन नहीं वहां तर्क नहीं होता, वहां तक तर्क पहुंचता ही नहीं-- "तक्का तत्थ न विज्जई ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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