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________________ ५० समस्या को देखना सीखें समस्याओं का अस्तित्व सरकार समस्याओं को सुलझाने के लिए है, पर वह स्वयं समस्याओं से मुक्त नहीं है । तर्कशास्त्र में अन्योन्याश्रय और अनवस्था, ये दो दोष माने गए हैं । समस्याओं के ये दो प्राण हैं । एक अश्वारोही से किसी पथिक ने पूछा- 'यह घोड़ा किसका है ?' उसने उत्तर दिया--- "जिसका मैं नौकर हूँ।' उसने फिर पूछा-- 'तुम किसके नौकर हो ?' उसने उत्तर दिया- 'जिसका यह घोड़ा है।' दोनों उत्तरों के बाद भी निर्णय लटकता रह गया । समस्या का अस्तित्व इसी में है कि कोई निष्कर्ष न निकले । एक आदमी आठ-दस कपड़े ओढ़ता था । पूछने पर वह बताता कि पहला कपड़ा मैला न हो, इसलिए दूसरा कपड़ा ओढ़ा है । दूसरा मैला न हो, इसलिए तीसरा ओढ़ा है | लोग उसे कहते- 'ग्यारहवां फिर ओढ़ो और तब तक ओढ़ते जाओ, जब तक मैला होने की संभावना हो।' यह अनवस्था का दोष है । किन्तु समस्याओं का अस्तित्व इसी में है कि एक समस्या अनावृत होती है, उससे पहले ही दूसरी समस्या सामने प्रस्तुत हो जाती है। समस्या के प्रति समस्या के प्रयोग आज जनता सोचती है कि सरकार उसके लिए समस्या है और सरकार सोचती है कि जनता उसके लिए समस्या है । चिन्तन इस बिन्दु के आस-पास घूम रहा है कि जनता के लिए सरकार नहीं है और वह सरकार जनता के लिए हो भी कैसे सकती है, जो जनता की भावना का आदर न करे । इसी भावना की अनुभूति ने शायद अनशन और आत्मदाह जैसी समस्याओं की सृष्टि की है । ये अनशन और आत्मदाह समाधान नहीं हैं, किन्तु समस्या के प्रति समस्या के प्रयोग हैं । नई समस्या पैदा कर पहली समस्या को सुलझाने के प्रयत्न हैं । किन्तु चिन्तन के आकाश में एक प्रश्न उभर रहा है, क्या वे प्रयोग समस्या को सुलझा सकेंगे ? सम्यक् उपाय हमारा चिन्तन केवल वर्तमान की धुरी में अटक गया है । हम आज भविष्य की प्रलम्ब काया को आँखों से ओझल कर सांस ले रहे हैं । इसे हम कैसे भुला देते हैं कि कोई भी सरकार स्थायी नहीं होती, इसलिए वह स्थायी समस्या भी नहीं हो सकती । किन्तु समाज में जो परम्परा डाल दी जाती है, वह स्थायी हो जाती है और उसके दीर्घकालीन परिणाम समाज को भुगतने पड़ते हैं । अनशन और आत्मदाह की परम्परा कितनी भयंकर हो सकती है, किसी भी समाज और सरकार के लिए, क्या उसकी हमें कल्पना नहीं है ? अनशन और आत्मदाह जैसे प्रयत्नों से सरकार को बाध्य करना समस्या का हल है या जनमत को जागृत करना ? यदि जनमत जागृत हुआ तो वह जन-भावना का अनादर करने वाली सरकार को तत्काल अपदस्थ कर देगा । लोकतंत्र में समस्याओं के हल का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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