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________________ ૪૬ अकाट्य तर्क पहले मान्यता स्थिर होती हैं, फिर कार्य होता है। लोगों ने मान रखा है कि शक्तिसंतुलन ही शान्ति का सर्वोत्तम उपाय है। रूस और अमेरिका में से कोई भी इस दौड़ में पिछड़ जाता तो युद्ध शुरू हो जाता। दोनों साथ-साथ चल रहे हैं, इसलए युद्ध रुका है। तर्क के प्रति कोई तर्क नहीं है, क्योंकि बहुतों ने इसे अकाट्य मान रखा है। जो अकाट्य हों उसे काटने का यत्न क्यों किया जाए ? हम तर्क से ऊपर उठकर देखते हैं तो लगता है कि इस दौड़ का मूल्य कल्पनाजगत् में है । यथार्थ में वह शून्य है । यदि युद्ध छिड़ता है तो दोनों सुरक्षित नहीं हैं, दुनिया का कोई कोना सुरक्षित नहीं है और यदि युद्ध नहीं होता है तो अणु अस्त्रों का निर्माण कोरा अपव्यय है । इसका निर्माण दोनों दृष्टियों से व्यर्थ है । पर कोई एक करता है तो दूसरा बच भी कैसे सकता है ? मानवता के प्रति सबसे बड़ा अन्याय उसने किया, जिसने अणु अस्त्रों के निर्माण में पहल की । महापशु बन रहा है मनुष्य हम वर्तमान प्रश्न पर सोचें तो क्या यह सर्वथा निश्चित है कि शक्ति संतुलन रहने पर युद्ध नहीं होगा ? कभी-कभी आदमी में उन्माद भी जागता है, आवेग भी आता है । मानसिक संतुलन खो बैठने पर क्या कोई भी आदमी आगे पीछे की सोचता है । मानवीय दुर्बलताओं से हम अपरिचित नहीं हैं । हम इससे भी सुपरिचित हैं कि कुछेक व्यक्तियों की भूल का परिणाम समूचे संसार को भोगना पड़ता है । द्वितीय महायुद्ध का परिणाम किसने नहीं भोगा ? अणु-युद्ध का परिणाम कितना भयंकर है, इसकी कल्पना ही थ देती है । जो लोग मानवता की दृष्टि से देखते हैं, वे अणु अस्त्रों के निर्माण का विरोध कर रहे हैं, पर वे कितने हैं ? बहुत थोड़े । अधिक वे हैं, जो मानवता के विनाश को अपने सिरहाने रखकर सोते हैं। अपने विनाश की तैयारी पशु भी नहीं करता । मनुष्य महापशु बन रहा है, जो अपने ही हाथों अपनी चिता रच रहा है। मृत्यु से घबराना नहीं चाहिए किन्तु ऐसा मूर्खतापूर्ण निमंत्रण भी उसे नहीं देना चाहिए । समस्या को देखना सीखें आवश्यकता है तीव्र प्रयत्न की वे थोड़े से व्यक्ति, जिनके हाथ में सत्ता है, इस प्रश्न पर मानवीय दृष्टि से नहीं सोच रहे हैं । वे सोच रहे हैं राष्ट्रीय दृष्टि से । पर राष्ट्र रहेगा कैसे जब मनुष्य ही नहीं होगा ? अणु अस्त्रों से मृतप्राय मनुष्य जाति क्या राष्ट्र को समुन्नत रख सकेगी ? अणुअस्त्रों से अभिशप्त अन्धी, बहरी भावी पीढ़ी से क्या राष्ट्र समुन्नत होंगे ? सारी स्थिति बहुत स्पष्ट है, निर्विवाद है। उसे जानते हुए भी जो अनजान बन रहे हैं, उन्हें कैसे जगाया जाए ? आज इस दिशा में तीव्र प्रयत्न की आवश्यकता है । अभी-अभी एक अणु अस्त्रविरोधी सम्मेलन बुलाया था। वह भी शायद शीघ्रता में हुआ होगा । इसीलिए वहां शान्ति के लिए अनवरत प्रयत्न करने वाले अनेक संस्थाओं के प्रतिनिधि नहीं थे । अध्यात्मवादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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