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________________ समाज-व्यवस्था में दर्शन व्यक्तिवादी मनोवृत्ति आत्मानुशासन के मनोभाव को विकसित करना आवश्यक है । कहीं भी देखा , ईर्ष्या है, स्पर्धा है, एक-दूसरे को नीचे गिराने का भाव है और असहनशीलता है । समाज में जहां सापेक्षता है, वहां ऐसा क्यों होता है, आज भी एक प्रश्नचिह्न बना हुआ है साम्यवादी शासनमुक्त समाज की कल्पना लेकर चलते हैं। वहां क्या होता है ? अपनी सुरक्षा और अपने प्रतिस्पर्धी का पतन । एक ओर शासन मुक्ति की कल्पना, दूसरी ओर इतना स्वार्थ-संघर्ष, यह दर्शन की दूरी नहीं तो और क्या है ? व्यक्ति ने मान लिया, उत्कर्ष हो तो मेरा हो । मुख्य या शक्तिशाली मैं . ही बनूं | यह व्यक्तिवादी मनोवृत्ति ही सामाजिकता को वास्तविकता नहीं बनने देती; किन्तु आत्मानुशासन का विकास होने पर व्यक्ति व्यक्ति रहकर भी असामाजिक नहीं रहता । १३ समुद्र है व्यक्ति व्यक्ति में जो स्व की सीमा है, उसे न समझकर वह अपने में पर का आरोप कर लेता है । संक्रान्ति वेला में प्रत्येक वस्तु छोटी दीखती है। विशाल वस्तु भी दर्पण में समा जाती है। व्यक्ति भी सोचता है, सारी सृष्टि मुझमें समाहित हो जाए, पर ऐसा सोचनेवाला सत्य के निकट नहीं पहुंच पाता है । व्यक्ति समुद्र है । राग-द्वेष की उर्मियां उसमें कल्लोलें कर रही हैं। वहां सत्य-दर्शन नहीं होता । उन उर्मियों से ऊपर आनेवाले की ही दृष्टि स्पष्ट हो सकती है, भीतर रहनेवाले की नहीं । समाजवादी प्रणाली में भी सत्ता कुछेक व्यक्तियों में केन्द्रित हो गई है। जनता अपने को असहाय -सी अनुभव करती है। अपना व्रत लेकर चलनेवाले कभी अत्राण नहीं होते । शस्त्र शब्द में त्राण शक्ति की कल्पना है पर वह वास्तविक नहीं । भीषण आयुध रखनेवाले भी संत्रस्त ! स्व शासन आए दशार्णभद्र अपना ठाट-बाट लेकर भगवान महावीर के दर्शन के लिए चला । इन्द्र ने सेना की रचना की । राजा पराजित हो गया, त्राण अत्राण की अनभूति करने लगा क्योंकि वह पर की सीमा में चला गया था। अंत में वह भगवान की शरण में आया और विजयी बन गया । अब इन्द्र पैरों में आ लुटा । जो पर शासन में पराजित हो गया, वह स्व- शासन में आ विजयी बन गया। समाज में रहनेवाले स्व की सीमा में चले । इस स्व- शासन का विकास होने पर समाज में व्यवस्था नहीं होगी किन्तु एक विशेष अवस्था होगी। नियम कृत्रिम नहीं होगा, किन्तु सहज होगा । प्रेरणा का मूल भय नहीं होगा किन्तु कर्तव्यनिष्ठा होगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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