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________________ युवकशक्ति : संगठन बालक के उपकरण अविकसित होते हैं इसलिए उसमें निहित शक्तियां कार्यकर नहीं होतीं । बूढ़े के उपकरण शिथिल हो जाते हैं इसलिए उसकी शक्तियां कार्यक्षमता को खो बैठती है । युवा के उपकरण पूर्ण विकसित और पूर्ण सक्षम होते हैं इसलिए उसकी कार्यक्षमता असंदिग्ध होती है । युवा की यदि कोई भावात्मक संज्ञा करनी हो तो उसके लिए 'कार्यक्षमता' सर्वाधिक उपयुक्त संज्ञा होगी। शक्ति का प्रतीक युवक शक्ति का प्रतीक है, यह निर्विवाद सत्य है । शक्ति होना एक बात है और उसका समीचीन उपयोग होना दूसरी बात है । संस्कृत साहित्य में कहा गया है कि शक्ति के दोनों प्रयोग हो सकते हैं—रक्षण और पीड़न । जिस युवक के सामने महान् आदर्श होता है, उसकी शक्ति रक्षण या अहिंसा में लगती है | आदर्शहीन युवक की शक्ति पीड़न में लग जाती है। इस दुनिया में हर वस्तु अपूर्ण होती है । विश्व का नियम ही ऐसा है कि उसमें किसी भी वस्तु को पूर्णता प्राप्त नहीं है और वह इसलिए नहीं है कि यदि कोई वस्तु पूर्ण होती तो वह दूसरों से निरपेक्ष हो जाती । निरपेक्ष वस्तु का टिक पाना स्वयं उसके लिए भी कठिन होता है और दूसरों के लिए भी कठिन होता है । इसीलिए हर वस्तु अपूर्ण है और अपूर्ण होने के कारण वह दूसरों से सापेक्ष है । यह सापेक्षता ही विभिन्न वस्तुओं में सामंजस्य बनाये हुए हैं उन्हे. एक साथ टिकाये हुए है। अनुभव की निधि युवकों को वृद्ध लोगों की अपेक्षा है । वे उनसे निरपेक्ष होकर अपनी शक्ति का उतना और उतने सही ढंग से प्रयोग नहीं कर सकते, जितना कि सापेक्षता की स्थिति में कर सकते हैं। . __ वृद्ध व्यक्ति के पास अनुभव की निधि होती है । अनुभव और शक्ति का अन्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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