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________________ २०८ समस्या को देखना सीखें प्रतिबिम्बित होगी । वे इस कठिनाई के धागे मे उलझ जाएंगे कि वे क्या करें, जो उन्हें पढ़ाया जाता है वह करें या जो उनके पूर्वज कर रहे हैं, वह करें ? शिक्षा और व्यवहार की विसंगति भौतिक शिक्षा और उसके व्यवहार में कोई विसंगति नहीं है । नैतिक शिक्षा और व्यवहार में विसंगति है । कथनी और करनी का द्वैध मनुष्य की अपनी विशेषता है । मनुष्य के सिवाय अन्य किसी भी प्राणी में इतना ज्ञान विकसित नहीं है । शेष प्राणी कुछ प्रवृत्तियां करते हैं, किन्तु कहना नहीं जानते—दूसरों को विश्वास में लेना नहीं जानते । वे जो कुछ करते हैं, स्पष्ट करते हैं, छिपाना नहीं जानते । मनुष्य जो सोचता है उससे भिन्न कहता है और जो कहता है उससे भिन्न करता है । यह चिन्तन, वचन और कर्म का विरोध ही शिक्षा और व्यवहार की विसंगति का हेतु बनता है । नैतिक शिक्षा का सूत्र - नैतिक शिक्षा का सूत्र है—जो मन में हो, वही कहो और जो कहो, वही करो। कथनी और करनी की समानता और ऋजुता से नैतिक व्यवहार फलित होते हैं । किन्तु हमारे सामाजिक और राजकीय नियम कथनी-करनी के द्वैध और प्रवंचना को जितना प्रोत्साहन देते हैं उतना कथनी-करनी की समानता और ऋजुता को नहीं देते । कानून की अपनी कठिनाई है कि वह वास्तविकता को नहीं देखता, साक्ष्य को देखता है । साक्ष्य का संग्रह जितना प्रवंचना से होता है, उतना सचाई से नहीं होता । इसलिए बहुत बार प्रवंचना की जीत होती है, सचाई प्रताड़ित होती है। धन का प्रवाह जितना प्रवंचना की ओर प्रवहमान है उतना सचाई की ओर नहीं है । अधिकांश लोग प्रवंचना के द्वारा लाभान्वित होते हैं तब नैतिकता के नाम पर कुछ धर्मभीरु लोगों को भौतिकता के प्रत्यक्ष लाभ से क्यों वंचित रखा जाए ? विद्यालय का कार्य जिस अभिमत की मैंने चर्चा की है उसमें तथ्य नहीं हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। किन्तु वे इतने बलवान भी नहीं हैं, जो नैतिक शिक्षा के आधार को हिला सकें । यह हम स्वीकार कर सकते हैं कि समाज में अनेक बुराइयां हैं। अनीति को नीति की अपेक्षा अधिक प्रोत्साहन मिल रहा है। फिर भी समाज मात्र बुराइयों का पुलिन्दा नहीं है । यदि ऐसा होता तो नैतिक विमर्श की कोई अपेक्षा ही नहीं रहती। समाज. में बहुत अच्छाइयां भी हैं। जो अच्छाइयां हैं, वे ज्ञान और संस्कार से फलित हैं । जो बुराइयां है वे अज्ञान और संस्कारहीनता के कारण हैं । विद्यार्थी के अज्ञान को दूर करना, उसे अनैतिकता और नैतिकता के स्वरूप और परिणामों से परिचित करना, यह विद्यालय का काम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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