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________________ विचार-प्रवाह इस विश्व में जो है, वह प्रवहमान भी है। केवल स्थायी कुछ नहीं है । प्रत्येक स्थूल पदार्थ से रश्मियां निकलती हैं और वे समूचे आकाश-मण्डल में व्याप जाती हैं । हमारी वाणी जल-तरंगवत् भाषात्मक जगत् को प्रकम्पित कर देती है। हमारा मन चिन्तन के पश्चात् अपनी पौद्गलिक आकृतियों का विसर्जन करता है, आकाश उनसे भर जाता है । इस प्रकार हमारा शरीर, वाणी और मन सब प्रवहमान हैं । इसीलिए समरूपता, समप्रयोग और समचिनतन एक तत्त्वज्ञ के लिए आश्चर्यजनक नहीं होता। यहां मैं समचिन्तन की थोड़ी चर्चा करना चाहता हूं। तेरापंथ __ आचार्य पूज्यपाद ने लिखा- 'महावीर ने तेरह भेदों ( पांच महाव्रतों, पांच समितियों और तीन गुप्तियों) का अपने ढंग से निरूपण किया ।' आचार्य भिक्षु ने सम्भवतः इस विचार को पढ़ा ही नहीं, फिर भी उन्होने तेरापंथ की व्याख्या में भगवान् के इन्हीं तेरह भेदों को आधार माना। धर्म और राजनीति आचार्य भिक्षु ने कहा था-'धर्म और राजनीति भिन्न है ।' इसी आधार पर आचार्यश्री तुलसी ने बहुत वर्षों पहले लिखा था- 'राजनीति से धर्म पृथक् है ।' राष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन ने कहा था- 'हम धर्म और राजनीति को मिलाना नहीं चाहते । हमारा यही प्रयत्न है कि इन्हें दूर रखा जाए ।' संदर्भ : अहिंसा आचार्य भिक्षु ने लिखा— 'भौतिक उपलब्धि अहिंसा का परिणाम नहीं है । उसका परिणाम है आत्म-शुद्धि और मानसिक-शान्ति ।' महात्मा भगवानदीन ने इस विचार को इन शब्दों में व्यक्त किया है—'यह कहकर मैं हिंसा को बढ़ावा नहीं दे रहा, मैं तो सिर्फ अहिंसा की हद बता रहा हूं । सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य-—इन सभी धर्मों का मैं पुजारी हूं | इन सब पर अमल भी करता हूं—पर मैं यह मानने को तैयार नहीं कि इन. धर्मों की मदद से किसी को स्वराज्य मिल सकता है या कोई आदमी मालदार आप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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