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________________ समस्या को देखना सीखें 'मेरे लिए वेश तैयार करे तो तीस करोड़ वेश तैयार करने होंगे । यदि तुम्हारी मां तीस करोड़ व्यक्तियों के लिए वेश तैयार कर दे तो मैं तुम्हारा वेश पहन लूंगा । अन्यथा मैं अकेला तुम्हारा वेश नहीं पहन सकता ।' जिस व्यक्ति के मन में इतनी संवेदनशीलता जाग जाए, समाज के साथ एकात्मकता और तादात्म्यता स्थापित हो जाए, वही वास्तव में कार्यकर्त्ता कहलाने का अधिकार पा सकता है । १९० सहनशीलता का विकास प्रशिक्षण का तीसरा बिन्दु है— सहनशीलता का विकास । कार्य कौशल का बहुत बड़ा अंग है— सहनशीलता । जो व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र में काम करेगा, उसे बहुत सुनना पड़ेगा। एक गृहस्थ को ही नहीं, साधु को भी सुनना और सहना होता है । साधु भी तो कार्यकर्ता ही है । जिसने अपना स्वार्थ छोड़ा है, दूसरों के कल्याण में रत है, वह साधु भी कार्यकर्त्ता है । / तीन निर्देश महावीर ने मुनि को स्वार्थ की बात नहीं सिखाई । उन्होंने यह नहीं कहा – तुम केवल अपना कल्याण करो। मुनि के लिए महावीर ने कहा- तिन्नाणं तारयाणं – तुम स्वयं तरो पर अकेले नहीं, दूसरों को भी तारो । स्वयं बुद्ध बनो पर अकेले नहीं, दूसरों को भी बोधि दो । स्वयं मुक्त बनो, समस्याओं से मुक्ति पाओ पर अकेले नहीं, दूसरों को भी समस्याओं से मुक्त करो । महावीर के ये तीन निर्देश बहुत महत्वपूर्ण हैं स्वयं तरी, दूसरों को तारो स्वयं बुद्ध बनो, दूसरों को बोधि दो । स्वयं समस्या से मुक्ति पाओ, दूसरों को समस्याओं से मुक्ति का मार्ग दो । संक्रमणशील है जगत् दुनिया में कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता । हम यह मान लेते हैं— जो हिमालय की गुफा में बैठा है, वह अकेला है, पर वह भी वास्तव में अकेला नहीं है । क्या वह ऑक्सीजन नहीं ले रहा है ? क्या वह प्राणवायु नहीं ले रहा है ? क्या महावीर के .. विचार उसके मस्तिष्क से नहीं करा रहे हैं ? हमारा जगत् इतना संक्रमणशील है कि कोई अकेली रह नहीं सकता। मनोवर्गणा, वचन वर्गणा और काय वर्गणा के पुद्गल सारे जगत् में फैलते हैं, सबको प्रभावित करते हैं । प्रशिक्षण का सूत्र यह है— हम सहन करना सीखें आचार्य भिक्षु ने कितना सहा । उनका सारा जीवन सहिष्णुता का जीवन्त निदर्शन है । वचनों के प्रहार, गालियां, अपमान मुक्के की चोट, सब कुछ सहा । बहुत शांत भाव से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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