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व्यवस्था परिवर्तन और हृदय परिवर्तन
१८३ बाद महाभारत में उसका प्रवेश हुआ । आज बाह्य उपकरणों में सामूहिकता ने विकास किया है । एक समय ऊँट व्यक्तिगत वाहन था । दो-तीन आदमी उस पर बैठ सकते थे । आज वाहन का विकास हुआ है । एक बस में पचासों व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं। पहले एक आदमी बोलता था, कुछेक व्यक्ति सुन सकते थे। आज बोलने के साधनों में विकास हुआ है। एक व्यक्ति बोलता है, लाखों व्यक्ति सुन सकते हैं। यह बाह्य उपकरणों में सामूहिकता का विकास है ।
निमित्त का प्रभाव
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और निमित्त की अनुकूलता न हो तो होनेवाला कार्य रुक जाता है। इनकी अनुकूलता पर कार्य अभिव्यक्त हो जाता है। पावर हाउस से आने वाला विद्युत् प्रवाह बल्ब का निमित्त मिलने से प्रकाश देता है । बल्ब न हो तो वह प्रकाशित नहीं होता । बल्ब निमित्त है परन्तु उसकी भी अपनी उपयोगिता है । चैतन्य की अभिव्यक्ति में भी शरीर का निमित्त सहयोगी बनता है । व्रतों के लिए भी यही नियम
है।
कोई व्यक्ति नैतिक या व्रती बनता है तो उसकी अभिव्यक्ति उसके आचरण से होती है । नैतिकता आचरण से फलित होती है। वैसे मूर्खता भी आचरण से फलित होती
है।
एक मूर्ख अपने गांव में रहता था । लोग उसे मूर्ख कहकर बतलाते थे । मूर्ख नाम उसे प्रिय नहीं था इसीलिए वह अपना नाम-परिवर्तन करने के लिए अपना गांव छोड़कर दूसरे गांव चला गया । शहर में पहुंचा । प्यास लगी। सड़क पर नल था । टोंटी खोल पानी पीने लंगा ! जब तृप्त हो गया तो सिर हिलाया परन्तु टोंटी से अभी भी पानी आ रहा था । पास खड़ी औरतों ने उसके कार्य को देखा । वे कहने लगीं—'कितना मूर्ख है, नल बन्द नहीं करता ।' उसने सुन लिया । पास जाकर पूछा-'मेरा नाम तुम लोगों ने कैसे जाना ? मैं तो यहां कभी आया ही नहीं।'
बहनों ने हँसते हुए उत्तर दिया- 'तुम्हारी क्रिया से जाना ।'
व्यक्ति का आचरण स्वयं प्रकट कर देता है कि वह नैतिक है, या अनैतिक है ! व्यक्ति को प्रामाणिक बनाने में व्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ रहता है । अणुव्रत के मंच से इस विषय पर चिन्तन हुआ भी है ।
आवश्यक है परिस्थिति का निर्माण
समाज के लोगों को प्रामाणिक देखना चहते हैं तो उन्हें तदनुकूल व्यवस्था भी देनी होगी । विवाह आदि में खर्च पर नियन्त्रण नहीं किया गया तो संग्रह की भावना कैसे मिटेगी?
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