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________________ प्रदर्शन की बीमारी जो अपने पास है | उसे दूसरों को दिखाना सामाजिक जीवन का महत्त्व: अंग है । इसलिए सामाजिक संगम-स्थल एक प्रकार से प्रदर्शन स्थल होते है । वे प्रदर्शन अक्षम्य हो जाते हैं । जो घर की होली जलाकर किये जाते हैं। एक गरीब स्त्री किसी सेठ के घर गई, सेठानी ने चूड़ा पहना था । वह हाथीदांत से बना हुआ और बहुत बढ़िया था । आसपास की स्त्रियां उसे देखने के लिए आ रही थीं और उसे देख सेठानी को बधाइयां दे रही थीं। उस गरीब स्त्री ने यह सब देखा । उसके मन में आया कि मैं भी हाथीदाँत का चूड़ा पहनूं और पड़ोसियों की बधाइयां प्राप्त करूं । वह घर गई। अपने पति से कहा—'मुझे हाथीदाँत का चूड़ा ला दो।' पति ने कहा'रोटी बड़ी कठिनाई से मिलती है और तुम्हें चूड़ा चाहिए । यह नहीं होगा।' उसने कहा'यह होगा । चूड़ा लाए बिना घर में चूल्हा नहीं जलेगा।' पति ने बहुत समझाया पर उसने एक भी बात नहीं सुनी । आखिर पति ने हार मान ली । बेचारा बाज़ार में गया । एक सेठ से कर्ज़ लेकर चूड़ा लाया । उसने बड़ी प्रसन्नता से चूड़ा पहना । वह झोंपड़ी के द्वार पर आकर पीढ़े पर बैठ गई। हाथों को सामने लटका दिया । बहुत देर बैठी रही, पर उसे देखने के लिये कोई भी नहीं आया । एक दिन उसका वैसे ही बीत गया । दूसरे दिन उसने फिर वैसा ही किया पर उस दिन भी कोई नहीं आया । उसके मन में प्रदर्शन की आग भभक उठी । उसने हाथ में दियासलाई ली और झोंपड़ी को सुलगा दिया । देखतेदेखते आग की लपटें आकाश को छूने लगीं । चारो ओर से लोग दौड़े। लोगों ने आग पर काबू पा लिया पर झोंपड़ी जल कर राख हो गई । लोगों ने बड़ी सहानुभूति दिखाई। सबने कहा- 'बेचारी आगे ही गरीब है और फिर कैसा वज्रपात हुआ कि जो कुछ था वह सब स्वाहा हो गया ।' लोग संवेदना प्रकट कर रहे थे और उस स्त्री के मन में प्रदर्शन की आग सुलग रही थी। लोगों ने पूछा- 'बहन! तुम्हारे कुछ बचा कि नहीं?' वह बोली'और कुछ नहीं बचा, केवल यह चूड़ा बचा है ।' लोगों ने पूछा- 'अरे, यह कब पहन लिया ?' वह बोली-'यदि यह बात तुम पहले पूछ लेते तो मेरी झोंपड़ी क्यों जलती ?' लोग उसकी मूर्खता पर हँसे और उनकी सहानुभूति आक्रोश में बदल गई । इस दुनिया में चूड़ा दिखाने के लिए झोंपड़ी फूंकनेवालों की कमी नहीं है । क्या सामाजिक बुराइयों के पीछे इस प्रदर्शन की भावना का बहुत बड़ा हाथ नहीं है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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