SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूंजीवाद और अणुव्रत १६७ करें । प्रश्न होगा कि यदि पैसा शक्ति है तो फिर संयमन क्यों ? एक व्यापारी पूंजी के संयमन की कभी नहीं सोचता है। दिल्ली में एक उद्योगपति से मैंने पूछा कि चलीसों फैक्टरियां होते हुए भी नए नए कारखाने क्यों खोल रहे हैं ? उन्होंने कहा कि एक फैक्टरी के लिए दूसरी पूरक फैक्टरी खोलनी ही पड़ती है । आज अर्थ को गाड़कर रखने का युग नहीं, निधान का युग बीत गया । पैसों को घूमते रहना चाहिए। दिल्ली में पूज्य गुरुदेव के दर्शनार्थ आए एक जर्मन अर्थशास्त्री ने कहा- अर्थ को घुमाते रहना चाहिए । उसे निकम्मा नहीं रखना चाहिए । अर्थशास्त्र की नीति आज के अर्थशास्त्र की नीति है— परिवर्तन और पूंजी का संक्रमण । इससे पूंजी का विकास होगा । संग्रह के विकास पर भी नया शास्त्र आ गया है। मार्क्स ने समाजवाद पर बल देते हुए जब कहा कि पूंजी का एकत्रीकरण नहीं करना चाहिए तब वह नया लगा लेकिन दार्शनिक दृष्टि से यह पुराना विचार है । यह दुनिया किसी एक व्यक्ति की दुनिया नहीं, इस दुनिया में किसी एक को ही जीने और सुख से रहने का अधिकार नहीं है । आज कर्म के बारे में पुरानी विचारधाराओं को नहीं माना जा सकता । केवल भाग्य से ही दुःख और सुख की बात प्रमाणित नहीं हो सकेगी। जिन्होंने पुरुषार्थ और कर्तृत्व पर भरोसा किया, उन्होंने अपने भाग्य को बदल डाला । बदला है युग एक युग था जब राजाओं को ईश्वर का अवतार माना जाता था। ईश्वर के अवतार की बात पुरानी पड़ गई । अब यहां कोई राजा ईश्वर का अवतार नहीं । कोई भी साधारण व्यक्ति जन्म लेता है और अपने पुरुषार्थ से, अपने कर्तृत्व से राजा से भी बड़ा आज के युग का राष्ट्रपति बन जाता है। पुराने राजा से आधुनिक राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री का अधिकार बहुत अधिक है । आज स्थिति में अन्तर आ गया है । कर्मवाद के सिद्धान्त में अन्तर नहीं आया है, बल्कि त्रुटिपूर्ण धारणाओं में सुधार करने का मौका मिला है। पुराने जमाने में स्त्रियों को शिक्षण नहीं देने की बात कही जाती थी, लेकिन आधुनिक युग में वह स्थिति बदल गई है। बुराई की जड़ है परिग्रह पूंजी सामाजिक तत्व है । अमुक-अमुक व्यक्ति उस पर का अधिकार नहीं है । चिन्तन की यह देन भगवान् महावीर की है। संत विनोबा ने भी कहा है- "बुराइयों के दो कारण हैं— आरम्भ और परिग्रह । क्रूरता परिग्रह से पनपती है । धार्मिक माने जानेवाले के क्रूर कार्यों को देखकर उन्हें धार्मिक कहना जंचता नहीं। मनुष्य अज्ञानी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy