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________________ समस्या है बहिरात्म भाव १३९ फूट रही थीं । सम्राट् की आंखें चौंधियां गईं। उसने सोचा- इस एक बैल के निर्माण में जितना अकूत धन लगा है उतना धन मेरे समस्त राजकोष में भी नहीं है । वह बोला- 'महाराज ! मैंने यह एक बैल तैयार कर लिया है। ऐसा ही दूसरा बैल और तैयार करना है इसीलिए मैं वहां काम कर रहा था ।' सम्राट ने कहा-'नमस्कार ! तुम्हारी इस आकांक्षा की पूर्ति मैं नहीं कर सकता । यह एक घटना है, सामाजिक समस्या का एक अनन्य उदाहरण है । आदमी काल्पनिक आवश्यकताओं के लिए क्या-क्या नहीं करता ! उनकी पूर्ति के लिए किन दुःखद स्थितियों में वर्तमान युग का व्यक्ति जी रहा है ! यह हमारे सामने बहुत स्पष्ट है । वर्टेड रसेल ने अपनी पुस्तक में लिखा है— अगर ये काल्पनिक आवश्यकताएं समाप्त हो जाएं तो समाज की सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी, समस्याओं का समाधान मिल जाएगा । काल्पनिक समस्याओं के आधार पर ही आज का आदमी जी रहा है और उसमें बहिरात्मभाव काम कर रहा है । बहिरात्मा का लक्षण हरात्मा का पहला लक्षण है— शरीर और आत्मा को एक मानना । जिस व्यक्ति का दृष्टिकोण मिथ्या है, वह मानेगा— शरीर ही आत्मा है। आत्मा शरीर से भिन्न नहीं है । सूत्रकृतांग सूत्र में विस्तार से इसका वर्णन किया गया है । एक पक्ष होता है अधर्म कां । उसका मानना है— आत्मा नहीं है इसके समर्थन में उसके अनेक तर्क हैं । वह कहता है— यह तलवार है और यह म्यान है । म्यान में तलवार रहती है; जब चाहो तब तलवार को म्यान से बाहर निकल लो। म्यान अलग हो जाएगी और तलवार अलग हो जएगी । म्यान और तलवार - दोनों अलग-अलग दिखाई देंगी। अगर कोई हमें यह दिखा दे— यह है आत्मा और यह है शरीर । तब हम मान सकते हैं—- आत्मा है वरना हम मानने को तैयार नहीं हैं । उन्होंने इस तथ्य को अनेक उदाहरणों से पुष्ट किया है। एक उदाहरण है दही और मक्खन का । दही को मथकर घी से अलग किया जा सकता है। तिल को घानी में डालकर तेल और खल को अलग अलग किया जा सकता है वैसे ही अगर कोई यह बता दे - यह रही आत्मा और यह रहा शरीर तो हम मानेंगे- आत्मा है वरना नहीं मानेंगे । यह आत्मा की अस्वीकृति, शरीर को ही आत्मा मानना- बहिरात्मा का पहला लक्षण है । आसक्ति और क्रूरता बहिरात्मा का दूसरा लक्षण है— पदार्थ के प्रति गहरा आसक्ति । जब शरीर और आत्मा का एक मान लिया जाता है तब पदार्थ की आसक्ति जन्म लेती है। जिन लोगों में धन की प्रबल लालसा है। समझ लेना चाहिए— वे बहिरात्मा हैं । उनका दृष्टिकोण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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