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________________ १०८ समस्या को देखना सीखें वचन का मूल्य पुराने जमाने में यह माना जाता था कि वचन का मूल्य सर्वोपरि होता है । जो महान् आदमी होते हैं, उनके वचन पत्थर की लकीर के समान अमिट होते हैं । जिस आदमी का वचन जल ही लकीर के समान होता है, वह महान् नहीं माना जाता । वर्तमान में अपने वचन से मुकर जाना बड़ा कौशल है और बड़े आदमियों की खास पहचान है। पारस्परिक अविश्वास बढ़ाने में इसने बहुत बड़ा योग दिया है । नैतिक मानदण्ड पहले लोग केवल भारतीय थे । उनका सोचने-समझने का सारा ढंग भारतीय था । वे भारतीय पद्धति से ही जीते और उसी पद्धति से मरते थे। अब वैज्ञानिक उपलब्धियों ने सारे विश्व को बहुत निकट ला दिया है । अब भारतीय केवल भारतीय नहीं है, वह जागतिक है । इसलिए वह बहुत व्यापक दृष्टि से देखता है और उन्मुक्त मस्तिष्क से सोचतासमझता है । जब वह बुद्ध, महावीर, व्यास और शंकर को पढ़ता था तब उसे नैतिक मर्यादाएं अनिवार्य लगती थीं। अब वह फ्रायड को पढ़ता है तो उसे लगता है कि ये मर्यादाएं कृत्रिम हैं, इच्छाओं के दमन से निष्पन्न हैं । इनके पीछे वास्तविकता का कोई हाथ नहीं है । इसीलिए आज एक-एक कर मर्यादाएं समाप्त हो रही हैं । नैतिक मानदण्ड गिर रहे हैं । आज विश्वविद्यालयों में ब्रह्मचर्य की चर्चा उपहास का विषय बन जाती है । दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चान्सलर श्री गांगुली ने बातचीत के प्रसंग में कहा-"मुनिजी ! हम जब पढ़ते थे तब हमें ब्रह्मचर्य के बारे में बहुत बातें बताई जाती थीं । हमारा यह विश्वास हो गया था कि ब्रह्मचर्य बहुत बड़ी शक्ति है ।" शक्ति-संचय बहुत आवश्यक है । आज स्थिति बहुत भिन्न है । विश्वविद्यालय में मैं ब्रह्मचर्य के बारे में कहूं तो विद्यार्थी समझेंगे- यह किस युग की बात कर रहा है । आज ब्रह्मचर्य के प्रति बहुत आदर की भावना नहीं है। उसकी अच्छाई के प्रति आस्था भी नहीं है । इसीलिए आज विलास का निरंकुश चक्र चल रहा है । स्वस्थ समाज की अपेक्षाएं ___ आत्मानुशासन संयम, विनम्रता, पारस्परिक विश्वास और इन्द्रिय-संयम—ये स्वस्थ समाज की अनिवार्य अपेक्षाएं हैं। प्राचीन समाज में ये अपेक्षाएं धर्म, विनय, वचन-निर्वाह और मर्यादाओं के द्वारा पूर्ण होती थीं । अब इनके प्रति निष्ठा कम हो रही है। इसीलिए आज का युवक इनसे दूर हो रहा है । इन नामों से भले ही कोई दूर हो जाए पर इन अपेक्षाओं से कोई सामाजिक प्राणी दूर नहीं हो सकता । आत्मानुशासन के अभाव से व्यक्तिगत स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती । जिस समाज में अपने-आप पर नियत्रंण करने की क्षमता होती है, उस पर राज्य का नियंत्रण बहुत कम होता है । व्यक्तिगत स्वतन्त्रता बहुत व्यापक होती है। जैसे-जैसे समाज में आत्म-नियंत्रण की शक्ति कम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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