SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९० धार्मिक की समस्या 'जो अध्यात्म को जानता है वह बाहर को जानता है,' धार्मिकों ने इसे पकड़कर सोच लिया कि धर्म से धन, रोटी, पुत्र, सुख-वैभव सब कुछ प्राप्त हो जायेगा | धर्म के द्वारा इन सभी समस्याओं को सुलझाना कठिन होगा । प्यास पानी पीने से मिटेगी, भूख रोटी खाने से शान्त होगी और पैसा पुरुषार्थ से प्राप्त होगा । समस्याओं के सुलझाने में यर्थाथदृष्टि होनी चाहिए । समस्या को देखना सीखें व्यवहार जगत् की समस्या दूसरी ओर व्यवहार को पकड़नेवाले व्यक्ति सभी समस्याओं को सुलझाने में केवल व्यवहार को ही उपयोगी मानते हैं । वे धर्म और अध्यात्म को अनुपयोगी कहते हैं, अनावश्यक समझते हैं । अर्थशास्त्री भौतिक सामग्री के उत्पादन पर बल देते हैं किन्तु क्या मनुष्यों के सामने केवल भूख, प्यास, कपड़े आदि की ही समस्या है ? क्या इससे भी अतिरिक्त मन की सबसे बड़ी समस्या उनके सामने नहीं है ? समस्या का मूल कहां है ? समस्या बाहर से आती है किन्तु उसका मूल कहां है ? प्रयाग में त्रिवेणी है, किन्तु उसका मूल स्रोत कैलाश है । हमारी समस्याएं भी बाहर के विस्तार से आ रही हैं किन्तु उनका मूल हमारे मन में है । ९५ प्रतिशत समस्याएं हमारे मन से उत्पन्न होती हैं। जटिल और मूल समस्या है मन की। घर में धन-दौलत, पुत्र, परिवार, स्वास्थ्य सब कुछ होते हुए भी कलह है, भाई-भाई में झगड़ा है, पिता पुत्र लड़ते हैं और कहीं भी शान्ति नहीं । जहां सम्पन्नता ज़्यादा है वहां झगड़े और अशान्ति भी अधिक है। अभाव में इतने झगड़े और कलह नहीं दीखते; क्योंकि जिसके लिए झगड़े होते हैं वह वहां है ही नहीं । इससे स्पष्ट मालूम होता है कि समस्या भौतिक पदार्थों की ही नहीं, मन की भी है । आवेग से जुड़ी हैं समस्याएं क्रोध, लोभ, भय, मोह, वासना, घृणा, इर्ष्या, शोक आदि मन के ये आवेग जब तक जीवित हैं तब तक समस्या सुलझने वाली नहीं, चाहे समाजवाद आए या साम्यवाद । कोई भी वाद इन समस्याओं को सुलझा नहीं सकता । मार्क्स ने राज्यविहीन शासन-पद्धति की कल्पना की थी। जैन शास्त्रों में 'अहं इन्द्र' देवताओं की भी ऐसी ही चर्चा आती है जहां कोई स्वामी और सेवक नहीं होता । सब स्वयं में इन्द्र होते हैं । परन्तु उनके क्रोध, अभिमान, माया और लोभ उपशान्त होते हैं इसीलिए वे स्वामी - सेवक - विहीन स्थिति में पलते हैं । मार्क्स की राज्य-विहीन समाज की कल्पना अच्छी थी किन्तु वह इसलिए सफल नहीं हो सकी, क्योंकि उनका समाज क्रोध, मान, माया, लोभ की प्रचुरता वाला समाज है । वहां राज्य-विहीन समाज की अपेक्षा अधिनायकवादी समाज विकसित हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy