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________________ अध्यात्म की सूई : मानवता का धागा मैं देख रहा हूं— लगभग दो घंटे हो गये, अनेक वाहन, व्यक्ति और सवारियां एक ही सड़क से गुजर रहे हैं । इसी प्रकार एक ही बात कहनी है किन्तु शब्द और कहने वाले अनेक हैं । एकता-अनेकता का विचित्र संयोग है । पानी के लिये शब्द अनेक हैं किन्तु अर्थ एक ही है। पानी प्यास बुझा देगा, उसका शब्द के साथ प्रतिबंध नहीं है; क्योंकि अर्थ का शब्द के साथ प्रतिबंध नहीं है; वह भाषा के साथ बंधा हुआ नहीं है । भूमि पर चलने का हमारा सम्बन्ध है किन्तु उसके साथ तन्मयता और तादात्म्य होना चाहिए । भूमि की विशालता पैर नाप सकते हैं, वाहन नहीं, क्योंकि वाहनों के द्वारा आपका भूमि से तादात्य और एकत्व नहीं । वाहनों में तादात्य की अनुभूति नहीं होती। आकाश की विशालता पक्षी ही अपने पंखों से नाप सकते हैं, हवाई जहाज़ में बैठा मनुष्य नहीं । इसी प्रकार जिसके हृदय में मानवता का बीज अंकुरित हुआ है, वही मनुष्य की महानता विशालता को समझ सकता है। जिसके हृदय में मनुष्यता का बीज ही नहीं पनपा, वह इसे नहीं नाप सकता । सबसे बड़ा कौन ? एक बार देवताओं में प्रश्न उठा कि विश्व में सबसे बड़ा कौन ? एक ने कहापृथ्वी बड़ी है तो दूसरे ने कहा- पृथ्वी से तीन गुणा बड़ा समुद्र है । एक देवता ने कहासमुद्र से बड़े तो अगस्त्य ऋषि हैं, जिन्होंने समुद्र का चुल्लु से ही पान कर लिया था । दूसरे देव ने कहा आकाश बड़ा है क्योंकि सारे विश्व पर वह आच्छादित है । एक देव बोला...भगवान् सबसे बड़े हैं जिनका अस्तित्व कण-कण में है। अन्त में बहुत देर से चुप बैठे एक देव ने कहा भक्त सबसे बड़ा है जो अपने हृदय में भगवान् को बैठा सकता है। सचमुच मनुष्य महान् है । मस्तिष्क छोटा और शरीर लघु होते हुए भी उसकी चिंतनधारा विशाल है, प्रवहमान है । मनुष्य है तभी धर्म, दर्शन और भगवान् है, अन्यथा कुछ नहीं होता । हमारी कठिनाई है कि हम मनुष्य को पहचानते नहीं, पहचानना भी नहीं चाहते । मनुष्य को जाने बिना आदमी धार्मिक बन ही नहीं सकता । मनुष्य और मनुष्य के बीच मानवता का सूत्र था, वह धागा टूट गया । बल्ब से प्रकाश आ रहा है किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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