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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन २०७ नहीं । उसका मूल हेतु है-अनीति न बढ़े। किन्तु वह दिए बिना सत्य भी बदल जाता है। टिकट नहीं मिलती। लाइसेन्स नहीं मिलते । बड़ों से मुलाकात नहीं हो सकती। सार्वजनिक हॉस्पिटल में भी रोगी को सही चिकित्सा की गारण्टी नहीं मिलती। ये सभी अखरते हैं-एक को, दो को और बहुतों को। इसलिए इन्हें सुलझाने के लिए समाजवाद, साम्यवाद, प्रजातन्त्र आदि-आदि शासन-पद्धतियां, नागरिक सभ्यता और सामाजिक सुधार के कार्यक्रम चलते हैं। किन्तु मानसिक, आन्तरिक और वैयक्तिक समस्याओं की उपेक्षा हो रही है। ध्यान देना होगा; कहीं सारी समस्याओं का मूल यही तो नहीं है ? दैहिक आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, फिर भी उत्तरोत्तर अतृप्ति बढ़ती है। अमुक रोग या अमुक स्थिति में अमुक पदार्थ खाना हितकर नहीं किन्तु वह स्वादिष्ट है, इसलिए खा लिया जाता है। अधिक अब्रह्मचर्य से शारीरिक और मानसिक शक्तियां क्षीण होती हैं किन्तु संयम नहीं रहता । अनावश्यक संग्रह से चिन्ता, भय और प्रतिशोध बढ़ते हैं किन्तु उसके बिना मानसिक सन्तुष्टि नहीं होती। बाहरी और सामूहिक समस्याएं परिवर्तित होने पर क्या व्यक्ति आनन्द से भर जाता है ? ऐसा नहीं होता। महत्त्वाकांक्षा केवल उन्नति की आकांक्षा नहीं किन्तु सर्वोच्च बनने के लिए दूसरों को गिराने की प्रवृत्ति, यशोलालसा ईर्ष्या असहिष्णुता आदि-आदि ऐसी वृत्तियां हैं; जो व्यक्ति की आन्तरिक शान्ति को कुरेदती रहती हैं। ___सर्व सुविधा सम्पन्न राष्ट्र के नागरिक, जिन्हें जीवन की अनिवार्यताएं नहीं सताती, क्या इन वृत्तियों से मुक्त हैं ? पर्याप्त सुविधाएं मिलने पर भी उनमें संयम की चेतना न जागे तो शान्ति नहीं आती । दो व्यक्ति हैं। एक प्रेम करना चाहता है, दूसरा नहीं चाहता। चाह पूरी नहीं होती, मन अशान्ति से भर आता है। चाह या अपेक्षाएं अनेक होती हैं। जिनसे जो अपेक्षाएं हैं, वे उन्हें सफल नहीं बनाते, अपेक्षा रखने वाला खाक हो जाता है। सम्पन्न व्यक्तियों के जीवन में भी उलझनें आती हैं। कई चिन्ता में प्राण होम डालते हैं। कई आत्महत्या से भी नहीं चुकते। तात्पर्य में मत भूलिए-सुविधाओं से जीवन सरस बन जाता है, यह मनुष्य के सिर में सींग होने की बात से कम मिथ्या नहीं है। ___मोटर का ड्राइवर चाहता है-मैं सेठ जैसा धनी बनें । सेठ मन ही मन प्रार्थना करता है-मुझे ड्राइवर जैसी निश्चिन्त नींद आए। ड्राइवर शान्ति के मूल्य पर सुविधाएं चाहता है। यह सच है, सुविधा का स्वाद चखे बिना शान्ति का मूल्य समझ में नहीं आता। अभाव में प्रत्येक वस्तु मूल्यवान् बन जाती है । शान्ति की खोज सुविधाओं के अभाव से नहीं निकलती। वह उनके अतिरेक से उत्पन्न होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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