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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन __ भगवन् ! अन्य तीथिक ऐसा कहते हैं, प्रज्ञापना और प्ररूपणा करते हैंएक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है। वे दो क्रियाएं हैं-सम्यक् और मिथ्या। जिस समय सम्यक क्रिया करता है, उस समय मिथ्या भी करता है और जिस समय मिथ्या क्रिया करता है, उस समय सम्यक् क्रिया भी करता है। सम्यक् क्रिया करने के द्वारा मिथ्या क्रिया करता है और मिथ्या क्रिया करने के द्वारा सम्यक् क्रिया करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है। यह कैसे, भगवन् ? __ भगवान् ने कहा--गौतम ! एक जीव एक समय दो क्रियाएं करता है, यह जो कहा जाता है, वह सच नहीं है। मैं इस प्रकार कहता हूं, प्रज्ञापना और प्ररूपणा करता हूं, एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है-सम्यक् या मिथ्या। जिस समय सम्यक् क्रिया करता है, उस समय मिथ्या क्रिया नहीं करता और जिस समय मिथ्या क्रिया करता है, उस समय सम्यक् क्रिया नहीं करता। सम्यक् क्रिया करने के द्वारा मिथ्या क्रिया नहीं करता और मिथ्या क्रिया करने के द्वारा सम्यक् क्रिया नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है-सम्यक् या मिथ्या। मन, वचन और काय का व्यायाम एक समय में एक ही प्रकार का होता है। उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम भी एक समय में एक ही होता है। ___कर्मशास्त्र की दृष्टि से भी एक समय में एक ही प्रकार का अध्यवसाय होता है। उदाहरण के लिए वेदनीय कर्म को लीजिए, उसकी दो प्रकृतियां हैं -सात और असात। उसका बंध सात, असात-इन दो ही प्रकृतियों के रूप में होता है। सातासात जैसी मिश्र प्रकृति का बन्ध नहीं होता। गौतम ने पूछा-भगवन् ! जीव सात वेदनीय कर्म करते हैं ? भगवान्– हां, गौतम ! करते हैं। गौतम-भगवन् ! जीव असात वेदनीय कर्म करते हैं ? भगवान् - हां, गौतम ! करते हैं। कर्म-ग्रन्थ भी यही बताता है-वेदनीय की एक समय में एक ही प्रकृति बंधती है।" १. जीवाभिगम ३।२।१०४ २. स्थानांग १ ३. वही, १ ४. भगवती ७।६।२८६ ५. कर्मग्रन्थ ५८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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