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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन १६३ और वास्तविक, दोनों कोटि की हिंसा की निवृत्ति अयोगी-दशा (चतुर्दश गुणस्थान्) में होती है। वीतराग के शेष तीन गुण-स्थानों में व्यावहारिक यानी काययोग-जनित हिसा हो सकती है, वास्तविक नहीं। अवीतराग गुण-स्थानों (सातवें से दसवें तक) में कषायांशजनित अन्तर्-परिणति रूप हिंसा होती है। छठे में प्रमाद-जीवन अशुभ योग रूप हिंसा हो सकती है, अविरतिजनित हिंसा नहीं। शेष पांचों में प्रमाद-जनित हिंसा कादाचित्क होती है और अविरति रूप हिंसा नैरन्तरिक। छठे गुणस्थान वाले मुनि अविरति रूप हिंसा-निवृत्ति की दृष्टि से ही अहिंसक हैं। प्रमाद-जनित हिंसा की दृष्टि से वे कदाचित् हिंसक भी हो सकते हैं। भगवती सूत्र का एक प्रकरण देखिए : गौतम ने पूछा-भगवन् ! जीव क्या आत्मारम्भ-आत्म-हिंसक है या परारम्भ-परहिंसक या उभयारम्भ-उभयहिंसक या अनारम्भ-अहिंसक? भगवान्-गौतम ! जीव आत्मारम्भ भी होते हैं, परारम्भ भी, उभयारम्भ भी और अनारम्भ भी। __ गौतम-भगवन् ! वह कैसे ? भगवान् गौतम ! जीव दो प्रकार के होते हैं—संसारी और सिद्ध । सिद्ध अनारम्भ होते हैं। संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं-संयत और असंयत । संयत दो प्रकार के होते हैं--प्रमत्त संयत और अप्रमत्त संयत। अप्रमत्तसंयत अनारम्भ होते हैं। प्रमत्त-संयत शुभ योग की अपेक्षा अनारम्भ होते हैं और अशुभ योग की अपेक्षा आत्मारम्भ, परारम्भ और उभयारम्भ-तीनों होते हैं, अनारम्भ नहीं होते। असंयत अविरति की अपेक्षा आत्मारम्भ, परारम्भ और उभयारम्भ होते हैं, अनारम्भ नहीं होते। साधु और गृहस्थ में इतना अन्तर हैगृहस्थ अविरति की अपेक्षा सदा सर्वथा हिंसक होता है, उस स्थिति में छठे गुणस्थान का अधिकारी कदाचित् प्रमाद-काल में ही हिंसक होता है, शेष काल में नहीं। पुण्य और धर्म स्वरूप-भेद पुण्य धर्म से नहीं होता। पाप जैसे अधर्म से जुड़ा हुआ है, वैसे पुण्य धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है। जहां अधर्म, वहां पाप-बन्ध-जैसी व्याप्ति है। पुण्य की धर्म के साथ एकान्त-व्याप्ति नहीं है। धर्म के दो क्रम हैं -संवर और निर्जरा। संवर से कर्म मात्र का निरोध होता है। निर्जरा के साथ पुण्य का थोड़ा-सा लगाव है। निर्जरा से पुण्य नहीं होता। वह निर्जरा का सहचारी है। निर्जरा होती है, वहां पुण्य-बन्ध होता है, वह भी एकान्ततः नहीं। सर्वनिर्जरा (चतुर्दश-गुणस्थान की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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