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________________ तृतीय संस्करण अहिंसा तत्त्व दर्शन का तृतीय संस्करण ईस्वी सन् १९८७ के परिसमापन में ही आ रहा है । जैसे-जैसे हिंसा बढ़ रही है, वैसे-वैसे अहिंसा के प्रति ध्यान आकर्षित हो रहा है। किन्तु हिंसा की जड़ तक पहुंचे बिना इसका निराकरण संभव नहीं और अहिंसा की गहराइयों में गोता लगाए बिना उसकी संप्राप्ति भी संभव नहीं। प्रस्तुत ग्रन्थ में हिंसा के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श किया गया है। वह उसके हृदय को छूने का एक प्रयत्न है। इस विमर्श में प्राचीन आचार्यों के साथ-साथ आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी भी जुड़े हुए हैं। पारिभाषिक शब्दावली के कारण कहीं-कहीं इस ग्रन्थ का विषय अधिक गहरे चिन्तन, मनन और मंथन की अपेक्षा रखता है। आकाश की ऊंचाइयों को छूने के लिए अतल की गहराइयों में जाना अवश्य संप्राप्त है । उसके लिए आवश्यक होगा-एक नया प्रयत्न और नया प्रस्थान । वह समाज, राज्य आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित करने पर भी अपनी सत्ता को स्वतंत्र रखने वाली अहिंसा का स्वरूप समझा सकेगा। अणुवत-विहार नई दिल्ली २५ दिसंबर १९८७ -युवाचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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