________________
३१. प्रेक्षाध्यान : मानसिक प्रशिक्षण के पांच सूत्र
आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो, स्वयं स्वयं को देखो-यह प्रेक्षाध्यान का मूल सूत्र है।
__ भगवान महावीर की ध्यान-पद्धति दर्शन की पद्धति है । हमारी आत्मा और शरीर तत्वतः भिन्न होते हुए भी व्यवहार के धरातल पर भिन्न नहीं हैं । श्वास, शरीर, वाणी और मन-ये सब प्राणशक्ति द्वारा संचालित होते हैं । प्राणशक्ति सूक्ष्म शरीर (तेजस शरीर) का विकिरण है। सूक्ष्म शरीर अतिसूक्ष्म शरीर (कर्मशरीर) द्वारा संचालित होता है। अति सुक्ष्म शरीर आत्मा द्वारा संचालित होता है। इसलिए श्वास, शरीर, प्राण और कर्म के स्पंदनों को देखना आत्मा को देखना है।
अपने-आपको देखने का पहला सूत्र है-~-कायोत्सर्ग। हम शरीर की सक्रियता का मूल्य जानते हैं । उसकी निष्क्रियता का मूल्य नहीं जानते, इसी. लिए हम मांसपेशीय तनाव के शिकार होते हैं। इस तनाव से बचने का उपाय है-शरीर की चंचलता का विसर्जन । शरीर शान्त होता है, तब श्वास मंद हो जाता है, मन की चंचलता कम हो जाती है। कायोत्सर्ग का आध्यात्मिक मूल्य है-अन्तर की अनुभूति और उसका मानसिक मूल्य हैमानसिक तनाव और मनोकायिक रोगों से छुटकारा ।
___अपने-आपको देखने का दूसरा सूत्र है-अप्रमाद । उसका एक रूप है-जागरूकता-सत्य और संयम के प्रति जागृत मनोभाव । उसका दूसरा रूप है-भावक्रिया-शरीर के कर्म और मन का सामंजस्य ।
मिथ्यादृष्टि और असंयम या इन्द्रिय-लोलुपता से हमारी चेतना सुषुप्त हो जाती है। सुषुप्त चेतना में दुःख-बीज अंकुरित होते हैं । अप्रमाद जीवन की दिशा को बदल देता है । हमारी सुख की दिशा उद्घाटित हो जाती है।
हमारे शरीर के कम और मन दोनों साथ-साथ नहीं चलते। हम शरीर से एक काम करते हैं और मन से दूसरा काम करते हैं। इससे हमारी शक्तियां क्षीण होती हैं । भावक्रिया द्वारा हम इस शक्ति के अपव्यय से बच जाते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org