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मानसिक स्वास्थ्य
अवसर दो कि तुम मन से रुग्ण नहीं हो, मन से स्वस्थ हो ।
मानसिक स्वास्थ्य का तीसरा पेरामीटर है- विचार । मानसिक अशांति का बहुत बड़ा कारण यह कि व्यक्ति विचार करना नहीं जानता । आदमी सोचने कुछ बैठता है और सोच कुछ और लेता है। आदमी जानता ही नहीं कि कैसे सोचना चाहिए, कैसे चिन्तन करना चाहिए ? मनुष्य का सारा जीवन विचार के द्वारा संचालित होता है । जीवन का सारा कार्यकलाप विचार के द्वारा निर्धारित होता है, किन्तु वह नहीं जानता कि कैसे सोचना चाहिए, कैसे चिन्तन करना चाहिए ? सोचते समय मनुष्य के सामने M अनेक तर्क प्रस्तुत होते हैं और वह अपने सोचने के मार्ग से भटक जाता है । विचार के द्वारा व्यक्ति को परखा जा सकता है । व्यक्ति के विचारों का विश्लेषण करो और तुम यह जान जाओगे कि वह कैसा है । विचार के द्वारा ही व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को जाना जा सकता है । जब मन स्वस्थ होता है, तब व्यक्ति की उपज भी स्वस्थ होती है । वह सही बात को सही ढंग से सोचता है |
स्वस्थ चिन्तन कैसे होता है, इसे हम समझें । आचार्य भिक्षु जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । संयोगवश कोई साधु पास में नहीं था । वे अ ही थे। उस मार्ग से एक काफिला निकला । कुछ लोग पास में आए। उन्होंने वंदना कर पूछा - "महाराज आप कौन हैं ? आपका नाम क्या ।" आचार्य भिक्षु ने कहा - " मैं मुनि हूं । मेरा नाम है भीखन ।" लोग एक साथ बोल पड़े - "अरे, भीखनजी ! हमने आपकी बहुत प्रशंसा सुनी है। गांव-गांव में आपकी महिमा के गीत गाए जा रहे हैं । हमारे मन में तो आपकी तस्वीर ही दूसरी थी । हमने सोचा था --- कितने बड़े संत होंगे। उनके साथ संतों की बड़ी टोली होगी । उनके पास हाथी, घोड़े, नौकर-चाकर आदि होंगे। बड़ा ठाट-बाट होगा । परन्तु आप तो अकेले ही हैं । जमीन पर बैठे हैं । न नौकर, न चाकर, न घोड़ा, न हाथी । सामान्य व्यक्ति की भांति आप बैठे हैं ।"
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आचार्य भिक्षु के मन पर इस चिन्तन का कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि उनका चिन्तन स्वस्थ था । यदि चिन्तन अस्वस्थ होता तो मन-ही-मन दुःखी हो जाते और यह सोचते कि लोगों के मन में मेरी तस्वीर कुछ और है और मैं कुछ और हूं। यदि जमीन फट जाए तो मैं उसमें समा जाऊं । आचार्य भिक्षु ने सोचा- 'यदि मेरे पास इतना ठाट-बाट, हाथीघोड़े होते तो भीखन की इतनी महिमा नहीं होती। मैं अकेला हूं इसलिए
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