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किसने कहा मन चंचल है
सहायक सिद्ध होगी। कायोत्सर्ग-प्रतिमा
___ इसका अर्थ है-शरीर को छोड़ना । 'आचारांग सूत्र' में एक शब्द है—मुयच्च-मृतार्चा । अर्चा का अर्थ है-शरीर । जब तक अर्चा नहीं मरती, शरीर नहीं मरता तब तक धर्म को नहीं जाना जा सकता ! यह वैज्ञानिक सूत्र है।
धर्म का पहला रहस्य है-विवेक का जागरण । यह तब समझ में आता है जब शरीर मर जाता है। कायोत्सर्ग शरीर के मारण की प्रक्रिया है। शरीर को मार दें, छोड़ दें। जीवन का सार है-जीवित शरीर का मृत-सा हो जाना।
जब किसी व्यक्ति को जीवित होते हुए भी मृत होने की अनुभूति होती है तब कायोत्सर्ग घटित होता है ।
आदमी मरा या नहीं, इसे जानने के लिए मृत व्यक्ति के नथुनों पर रुई का फोवा रखा जाता है। यदि श्वास का स्पंदन नहीं है तो आदमी मृत है। शरीर का स्पंदन और श्वास का स्पंदन-ये जीवित रहने के दो मूलभूत प्रमाण हैं । यदि दोनों नहीं हैं तो मृत्यु घटित हो जाती है ।।
कायोत्सर्ग मरण की प्रक्रिया है, मृत्यु की प्रक्रिया है। इसमें दोनों बातें घटित होती हैं । शरीर इतना शिथिल कि उसमें कोई प्रवृत्ति नहीं होती । श्वास इतना मंद कि उसके स्पंदन अत्यंत हल्के हो जाते हैं। लगता है कि श्वास बंद हो गया है ।
_____ कायोत्सर्ग में दो बातें अवश्य होनी चाहिए-शरीर शांत, श्वास शांत । शरीर शांत है और श्वास शांत है तो काया का विसर्जन, काया की मृत्यु । कायोत्सर्ग विवेक की बहुत बड़ी प्रक्रिया है। यदि हमने यह समझ लिया कि यह शरीर हमारा अस्तित्व नहीं है, यह श्वास हमारा अस्तित्व नहीं है । हमारा अस्तित्व श्वास से हट कर है। हमारा अस्तित्व शरीर से हट कर है । ये एक पहलू के दो रूप हैं-श्वास अस्तित्व, अस्तित्व श्वास । शरीर अस्तित्व और अस्तित्व शरीर । शरीर आत्मा और आत्मा शरीर । यह इतना जो एकीकरण हो रहा है, यह मूर्छा की सघन रक्षापंक्ति है। इसमें लगता नहीं कि ये दो हैं। अद्वैत, कोरा अद्वैत-सा लगता है। जब कायोत्सर्ग का अभ्यास पुष्ट होता है तब शरीर और आत्मा, श्वास और आत्मा के पार्थक्य का स्पष्ट भान होने लगता है। ऐसा अनुभव होता है कि
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