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________________ २५८ किसने कहा मन चंचल है प्राप्त होती है। इस प्रकार दोनों प्रकार की शक्तियां ध्यान के माध्यम से ही उपलब्ध होती हैं । इसलिए आत्मविकास करने वाले व्यक्ति का यह पहला कर्तव्य है कि जो बनना है उसका वह चित्र बनाए । जब तक यह नहीं होता, तब तक जो बनना होता है वह नहीं बना जा सकता। इसके पश्चात् संकल्पशक्ति का उपयोग करें, इच्छाशक्ति का उपयोग करें। जो हमारी भावना है उसमें प्रबलता लाएं। भावना में प्रबलता का नाम ही इच्छाशक्ति, संकल्पशक्ति या दृढ़ निश्चय है। जब इच्छाशक्ति दृढ़ और प्रबल होती है तब 'बनने की दिशा में गति प्रारंभ हो जाती है। इच्छाशक्ति के द्वारा विचारों में ऐसे प्रकंपन पैदा होते हैं कि हमारा परिणमन प्रारंभ हो जाता है । न केवल हमारे विचारों में प्रकंपन शुरू होता है किन्तु आकाश-मंडल भी प्रकंपित हो उठता है। वायुमंडल में प्रकंपन होते हैं और वह घटित होने लग जाता है, जो होना है। हम कभी-कभी सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति ने भगवान् का साक्षात्कार कर लिया । कैसे किया ?-यह एक प्रश्न है । जिस व्यक्ति के मन में महावीर का चित्र स्पष्ट था, उसने महावीर का साक्षात् कर लिया। जिस व्यक्ति के मन में राम या कृष्ण का चित्र स्पष्ट था, उसने राम या कृष्ण का साक्षात् कर लिया। यह साक्षात् उसी रूप में होता है जिस रूप में व्यक्ति ने महावीर, राम या कृष्ण को देखा है, जाना है, समझा है । जिस व्यक्ति के मन में आचार्य भिक्षु का चित्र स्पष्ट था उस व्यक्ति ने आचार्य भिक्षु के दर्शन कर लिये। न जाने कितने भक्त कितने भगवानों को देख लेते हैं । वे देखते उसी भगवान् को हैं जिसका चित्र मन में स्पष्ट होता है। दूसरे भगवानों को नहीं देखा जा सकता। इसका तात्पर्य यही है कि पहले हमने एक चित्र बनाया। फिर कल्पनाशक्ति या संकल्पशक्ति के द्वारा वायुमंडल को इतना आन्दोलित कर दिया, इतनी तरंगें पैदा कर दी कि सारा वायुमंडल प्रकंपित हो उठा और उसमें से जो हमारा इष्ट था, उसकी आकृति हमारे सामने स्पष्ट हो गयी। यही हमारा साक्षात्कार है। दो शक्तियां हैं । एक है कल्पनाशक्ति और दूसरी है संकल्पशक्ति । इन दोनों का उपयोग करें। तीसरी शक्ति है-एकाग्रता । इसका भी उपयोग करें। हम जो होना चाहते हैं, उसी की ओर मन की सारी शक्ति को प्रवा. हित कर दें। भटकाव को मिटा दें। मन की शक्ति जब इधर-उधर दौड़ती है, एक लक्ष्य की ओर प्रवाहित नहीं होती तब सफलता नहीं मिल सकती। मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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