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________________ २२० किसने कहा मन चंचल हैं विचार करना है और मन में यह शक्ति है कि वह देश, काल की दूरी को पाट कर भी जहां चाहे वहां सान्निध्य प्राप्त कर सकता है । इस बार एक बड़ा प्रयोग हमें करना है । वह प्रयोग यह है कि मन की शक्ति का विशेष जागरण | हमारी चर्चा का विषय यही है - मन की शक्ति और सामायिक | मन की शक्ति को जगाना है और वह जागृत हो सकती है, सामायिक के द्वारा। इसलिए ही ये दोनों बातें बनती हैं, मन की शक्ति और सामायिक | एक प्रयोग यही करें कि जो देश-काल की दूरी है उसको मन से मिटा सकें, मन जहां चाहे पहुंच सके और जहां चाहे वहां सान्निध्य प्राप्त कर सके । आपको फिर यह प्रतीत नहीं होगा कि हमारे इस अनुष्ठान में एक कमी है कि आचार्यश्री की उपस्थिति प्राप्त नहीं है । इसे प्रयोग के द्वारा आप पूरा कर सकेंगे और हमें आशा है कि आचार्यवर का यहां विराजना न हो सकने पर भी उनका आशीर्वाद उपलब्ध रहेगा और उनकी उपस्थिति भी । आप लोग अपने मनकी, ध्यान की शक्ति के द्वारा उपस्थिति प्राप्त करें और कभीकभी आचार्यवर से प्रार्थना करें कि वे भी अपनी उपस्थिति यहां प्राप्त करावें । तो वे दोनों बातें पूरी हो जाएंगी और यह अनुष्ठान एक बहुत प्रयोगात्मक अनुष्ठान होगा । इसमें और नई उपलब्धियां होंगी । मार्ग पर चलने का संकल्प, अन्तर्दर्शन का संकल्प और आध्यात्मिक अनुभव का संकल्प — ये तीन संकल्प हमारे अन्तःकरण में प्रतिष्ठित होते हैं तो प्रस्तुत अनुष्ठान के लिए बहुत बड़ा बल उपलब्ध हो जाता है । अब `उपसंपदा के पांच सूत्रों पर विशेष मनन करें । उपसंपदा का पहला सूत्र हैभाव-क्रिया । भाव - क्रिया - क्रिया - काम करना । काम हम करते हैं । काम दो भागों में बंट जाता है । एक वर्ग का नाम रखा गया - द्रव्य - क्रिया और दूसरे का नाम है-भाव क्रिया । जब एक काम करते हैं और अनेक काम करने लग जाते हैं तब क्रिया द्रव्य क्रिया यानी अवास्तविक क्रिया हो जाती है, वास्तविकत क्रिया नहीं रहती । क्रिया का वास्तविक रूप समाप्त हो जाता है । हाथ चलता है, मुंह में कौर जाता है । हाथ की क्रिया हुई, कौर उठा, मुंह में गया । अब हाथ की क्रिया समाप्त हो गयी तो दांतों की क्रिया शुरू हो गयी । चबाना शुरू कर दिया। उसके साथ मन कोई दूसरी क्रिया न करे, कोई व्यवधान न डाले, तब वह क्रिया भाव-क्रिया होती चली जाएगी । किन्तु मन ने इतना विक्षेप डाल दिया कि हाथ कुछ कर रहा है, दांत कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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