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साधना की निष्पत्ति
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स्थिति का अनुभव कर लेता है । वह अनुभव करता है कि उसका शरीर हल्का हो गया है, भार मिट गया है ।
अध्यात्म साधना की पहली निष्पत्ति है तनाव मुक्ति और दूसरी निष्पत्ति है - जागरूकता । मन को जागरूक बना देना । मन को जागरूक बनाए बिना हम मनचाहा काम उससे नहीं ले सकते । हम शरीर- प्रेक्षा करते हैं। मन को भीतर ले जाने का प्रयास करते हैं, किन्तु वह बाहर ही बाहर दौड़ता है, भटकता है । क्योंकि वह जागरूक नहीं है । अजागृत अवस्था में ऐसा ही होता है । जब मन जाग जाता है तब सब कुछ जाग जाता है | को जगाने के बाद और किसी को जगाने की आवश्यकता नहीं होती । मन जब जाग जाता है तब अपने भीतर बैठा हुआ अपना प्रभु, अपना परमात्मा जाग जाता है । जब मन नहीं जागता तब भीतर बैठा हुआ प्रभु नहीं जागता । एक के जागने पर सब जाग जाते हैं। एक के सोने पर सब सो जाते हैं । एक मन के जागने पर सब जाग जाते हैं । एक मन के सोने पर सब सो जाते हैं ।
दूसरा महायुद्ध चल रहा था । भीषण बमवर्षा हो रही थी । लंदन नगर संत्रस्त था । सारे नगर में भय का साम्राज्य छाया हुआ था । उस नगर में एक बूढ़ी महिला निश्चित सोती और निश्चित जागती । आस-पास के लोगों की नींद हराम हो चुकी थी । वे न सुख से सो पाते और न सुख से जाग पाते । दूसरे सभी जागते किन्तु बुढ़िया निश्चिन्त सोती, गहरी नींद ती । लोगों ने बुढ़िया से पूछा - "मां ! क्या बात है ? सारा नगर भय से आक्रांत है। यहां कोई भी सुख की चैन नहीं सो सकता । तुम कैसे सुखपूर्वक सो जाती हो ? रहस्य क्या है ?" बुढ़िया ने कहा - "बेटा ! मेरा प्रभु सदा जागता है । फिर मैं क्यों जागती रहूं। दो को जागने की जरूरत नहीं है ।"
यह सच है । जब मन जाग जाता है फिर कोई जागे या न जागे, कोई जरूरत नहीं है । किसी को जगाने की भी जरूरत नहीं है । वास्तविकता तो यह है कि मन के जगाने पर कोई सोया रह नहीं सकता । सबको जगाना ही पड़ता है ।
जागरूकता का विकास सिद्धान्त को जानने मात्र से नहीं होता उसका विकास तब होता है जब साधक उचित दिशा में जागरूकता का अभ्यास करे ।
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