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किसने कहा मन चंचल है ३. 'नो समनस्कता'-'नो अमनस्कता'-मानसिक तटस्थता या अमन ।
समनस्कता का अर्थ है कि हमारा मन उसी प्रवृत्ति में संलग्न रहे जिसे हम कर रहे हैं।
अमनस्कता का अर्थ है-हम किसी एक काम में लगे हुए हैं, किन्तु मन किसी दूसरी प्रवृत्ति में लगा हुआ है। यह अमनस्कता है।
समनस्कता या अमनस्कता में अमन की स्थिति पैदा नहीं होती । मन रहेगा, चाहे वह इस प्रवृत्ति में लगा रहे । या उस प्रवृत्ति में लगा रहे । मन किसी में लगा अवश्य ही रहेगा । वहां अमन की स्थिति प्राप्त नहीं होती। मन छूटता नहीं। कोई व्यक्ति भोजन करने बैठा है किन्तु मन दुकान में दौड़ रहा है। यहां मन का अनस्तित्व नहीं है। मन है, भोजन में नहीं, किन्तु दुकान में । मन की उपस्थिति है।
अमन की स्थिति तब प्राप्त होती है जब मन कहीं भी लगा हुआ न हो । नोसमनस्कता और नोअमनस्कता-यह स्थिति है अमन की।
मन की दो अवस्थाएं हैं-समन और अमन । समन का मतलब है मन का होना और अमन का मतलब है मन का न होना, मिट जाना। मन को उत्पन्न ही नहीं करना । मन भी खो सकता है और शरीर भी खो सकता है।
आज ही एक साधिका सुना रही थी कि जब शरीर-प्रेक्षा कर रही थी, श्वास-प्रेक्षा कर रही थी तब वह उसमें इतनी निमग्न हो गयी कि उसे लगा श्वास आ-जा रहा है। यह चक्र चल रहा है किन्तु शरीर खो गया है, शरीर गायब है।
साधना में यह लाघव प्राप्त होता है। पुरानी जैन घटना है। एक साधक ध्यान कर रहा था । उसका ध्यान पुष्ट था । एक दिन वह बहुत गहराई में चला गया। शरीर हल्का हो गया। अचानक वह उठा और चिल्लाया-'अरे, देखो, मेरा, शरीर कहां है, वह खो गया है । उसे ढंढो। उसे खोजो।' कोई अजान व्यक्ति इसे पागल का प्रलाप-मात्र मान सकता है, किन्तु यह एक सत्य घटना है । ऐसा होता है । भार की अनुभूति मिट जाती है। शरीर की अनुभूति समाप्त हो जाती है और केवल ऐसे लगने लगता है कि परमाणुओं का पुंज इधर से उधर और उधर से इधर आ रहा है। और कुछ नहीं है । यह अमन की स्थिति है। जब अमन की स्थिति आती है, मन से अतीत की भूमिका आती है, मन उत्पन्न नहीं होता है तब शरीर भी खो
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