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किसने कहा मन चंचल है
जाती हैं । अतिरिक्त भार थकान पैदा करता है । बैलगाड़ी पर ज्यादा भार लादोगे तो बैल थक जाएंगे । मोटर पर अधिक भार लादेंगे तो इंजन टूट जाएगा, काम नहीं करेगा। यंत्र हो या प्राणी-यह अतिरिक्त भार से थक जाता है।
जब-जब हमारे आवेग और संस्कार जागते हैं तब-तब उन ग्रन्थियों पर अतिरिक्त भार पड़ता है । वे अस्वाभाविक रूप से काम करने लगती हैं। स्राव अधिक होता है । यह अतिरिक्त स्राव अनेक विकृतियां पैदा करता है । ग्रन्थियों की शक्ति क्षीण हो जाती है । परिणामस्वरूप शरीर का सारा संतुलन बिगड़ जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम इन आवेगों को रोकें, इन भावनाओं को रोकें, इन पर नियंत्रण करें। आवेगों को समझदारी से समेटें और ग्रन्थियों पर अधिक भार न आने दें । इसका भी उपाय है। वह उपाय है-धर्म।
आज ऐसा धर्म चाहिए जिसके साथ भय जुड़ा हुआ न हो । भगवान् महावीर का वाक्य है-न भेतव्वं-डरो मत । उन्होंने अपने धर्म का प्रारंभ यही से किया । वह धर्म चाहे अहिंसा है, सत्य है, अपरिग्रह है, सबके आगे जो प्रहरी बैठा है वह है-डरो मत, अभय रहो । उन्होंने कहा-किसी से मत डरो-बुढ़ापे से मत डरो, बीमारी से मत डरो, मौत से मत डरो, शत्रु से मत डरो । किसी से मत डरो।'
भय अनेक विकृतियां पैदा करता है । भय से सबसे ज्यादा प्रभावित होती है-एड्रीनल ग्रन्थि ।
सब धर्मों का मूल है--अभय । भगवान् महावीर ने कहा-"जो अभय नहीं होता, वह अहिंसक नहीं होता । जो अभय नहीं होता, वह सत्यवादी नहीं होता । जो अभय नहीं होता, वह ब्रह्मचारी या अपरिग्रही नहीं होता। आदमी भय के कारण हिंसा करता है, असत्य बोलता है, चोरी करता है, परिग्रह का संचय करता है।"
शस्त्रों का विकास भय के कारण ही हुआ है । एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से डरता है। अपने बचाव के लिए वह शस्त्र-निर्माण करता है । भय से भय बढ़ता ही जाता है । शस्त्रों का विकास होता जाता है । इसके मूल में हैभय । जब मनुष्य के मन में भय जागा तब अस्त्रों का आविष्कार हुआ। पत्थरों के शस्त्रास्त्रों से हम चले । ज्यों-ज्यों भय बढ़ता गया, शस्त्रों में परिष्कार हुआ और आज हम नवीन, सूक्ष्म और विचित्र शस्त्रों का अंबार लगाए
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