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किसने कहा मन चंचल है अध्यात्म के द्वारा सुख की खोज हो सकती है, सुख की पूर्ति हो सकती
खेत-खलिहानों में या बाजार में जाने पर आवश्यकता की पूर्ति होती है। पदार्थ के किसी भी क्षेत्र में जाने पर, पदार्थ की सीमा में जाने पर यह सच है कि आवश्यकता की पूर्ति होगी। पदार्थ का समूचा क्षेत्र आवश्यकतापूर्ति का क्षेत्र है।
__ अध्यात्म का क्षेत्र इससे बिल्कुल उल्टा है। वह है सुख-पूर्ति का क्षेत्र।
____मनुष्य इस विषय में भ्रान्त है । जो आवश्यकता-पूर्ति का क्षेत्र है उसे उसने कुछ देने वाला मान लिया, दुःख से छुटकारा देने वाला मान लिया। अगर इससे सुख की पूर्ति होती तो मैं समझता हूं कि आज के युग का व्यक्ति सबसे अधिक सुखी होता। आज के विज्ञान ने जितने पदार्थ उपलब्ध कराए हैं, वे अनगिन हैं। उनका विकास चरम सीमा को पार कर गया है। फिर भी आदमी दुःखी है, उसे सुख नहीं मिला है। हम इस सचाई को स्वीकार करें कि जिन मनुष्यों को अधिक पदार्थ उपलब्ध हैं, वे ही अधिक पागल होते हैं। वे ही अधिक आत्महत्या करने वाले होते हैं। वे ही अधिक अनिद्रा के शिकार होते हैं। वे ही अधिक-से-अधिक नींद की गोलियां खा-खाकर नींद लेने का प्रयत्न करते हैं। उन लोगों में ही अपराध की वृत्ति अधिक पनपी है। इन सब रोगों का एक ही कारण है-पदार्थों की अधिक उपलब्धि । हमें इस पर विचार करना है। यदि पदार्थ से ही सुख होता तो ये न्यूनताएं कभी मनुष्य में नहीं पनपतीं। पदार्थ की दृष्टि से जो सम्पन्न राष्ट्र हैं वे यह घोषणा करते-'आओ, हम तुम्हें सभी दुःखों से छुटकारा दिला देंगे। किन्तु आज वे राष्ट्र दिग्भ्रांत हो रहे हैं। भटक रहे हैं। वे स्वयं शांति की खोज में हैं, सुख की खोज में हैं।
हम सब साधना के लिए उपस्थित हैं, आवश्यकता-पूर्ति के लिए नहीं। शरीर है तो उसकी कुछ मांगें भी हैं। परिवार है तो उसके प्रति कुछ दायित्व भी है। आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कमाना भी आवश्यक होता है। अध्यात्म इस तथ्य को स्वीकार करता है। वह इसे कभी नहीं नकारता। साधना का अभ्यास करने से यह अन्तर अवश्य आता है कि साधक साधना को केवल समय-यापक मात्र नहीं मानता। वह उसे सार्थक मानता है, आवश्यक मानता है। साधना से स्फूर्ति बढ़ती है, दृष्टि
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