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________________ २४२ किसने कहा मन चंचल है आधार पर होता। तीर्थंकरों के लिए कहा जाता है कि उनके शरीर से पद्मकमल जैसी सुरभि-गंध निकलती है। यह उनकी विशेषता मानी गयी है। प्रत्येक प्राणी के शरीर से गंध निकलती है। वह अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी हो सकती है। सबके शरीर से पद्म जैसी ही गंध निकले यह आवश्यक नहीं है। स्त्रियों के वर्णन में प्राचीन ग्रंथों में यह उल्लेख है कि जो स्त्री पद्मिनी होती है, उसके शरीर में पद्म जैसी सुगंध आती है। उस स्त्री के माध्यम से अनेक प्रकार की विद्याओं की सिद्धि की जाती थी। प्रत्येक प्राणी के शरीर से गंध निकलती है। प्रत्येक व्यक्ति में हथेली और पैरों के तलवे से गंध प्रवाहित होती है पसीने के माध्यम से । चोरों को इस गंध के आधार पर पकड़ा जाता है। उनके हथेली और पैरों से निकलने वाले पसीने के आधार पर यह होता है । आज के चोर इससे बचने के लिए हाथ में मोजे और पैरों में जूते पहनकर चोरी करते हैं । किन्तु गंध के परमाणु इतने सूक्ष्म होते हैं कि वे इनको पार कर पृथ्वी पर या पदार्थ पर अपना चिह्न छोड़ जाते हैं। नामकर्म की एक प्रकृति है-गंध नामकर्म । यह एक विभाग है। इसके द्वारा ही गंध का स्रवण होता है। इसी प्रकार नामकर्म के और-और विभाग भी हैं-रस नामकर्म, स्पर्श नामकर्म, आदि-आदि । हमने नामकर्म को भुला दिया है । मैं कई बार सोचता था कि नामकर्म की प्रकृतियों का इतना लंबा जाल क्यों बिछाया गया है-आतप नामकर्म, उद्योत नामकर्म, पराघात नामकर्म, श्वासोच्छ्वास नामकर्म, शरीर नामकम, गति नामकर्म । इतने नामों का प्रयोजन क्या है ? शरीर के साथ ये सारी बातें जुड़ी हुई हैं । सामने दीख रही हैं । फिर इनको गिनाने का प्रयोजन ही क्या है ? कोई नई बात बताते । नई खोज प्रस्तुत करते। ऐसा सोचना अज्ञान का द्योतक है । ग्रन्थियों के आधार पर जब इस कर्मशास्त्रीय वर्णन को समझने का प्रयत्न किया जाता है तो यह सचाई सामने आ जाती है कि ग्रन्थियां जो काम हमारे स्थूल शरीर में कर रही हैं वे सारे कार्य सूक्ष्म शरीर में भी हो रहे हैं । जो कार्य सूक्ष्म शरीर में हो . रहे हैं, उनके ही संवादी कार्य स्थूल शरीर में हो रहे हैं। सक्ष्म शरीर नियंता है । हमारे श्वास और उच्छ्वास का नियन्त्रण सूक्ष्म शरीर करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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