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किसने कहा मन चंचल है:
कर देता है । अब प्रदर्शन प्रारंभ होता है। साधक प्रदर्शन में फंसकर कभी पानी पर चलता है, कभी आकाश में अधर टिका रहता है और कभी और कुछ दिखाता है | साधना का भाव धूमिल हो जाता है, लक्ष्य टूट जाता है । लोग बहुत बार पूछते हैं - 'इतने वर्ष साधना की, उससे क्या चमत्कार प्राप्त हुए ?' मैं कहना चाहता हूं कि चमत्कार का नाम ही झूठ है । वह कोरा भुलावा, कोरी छलना, कोरी ठगाई है । चमत्कार कोई है नहीं । सारा है प्रकृति का नियम । जो उस प्रकृति के नियम को नहीं जानते वे उसे चमत्कार कह देते हैं । कोई आदमी अधर में उठ गया, हम मान लेते हैं कि चमत्कार हो गया । यह कैसा चमत्कार ! यह तो प्रकृति का प्रभाव मात्र है ।
हम अपने शरीर को ठोस मानते हैं । ठोस चीज जब ऊपर उठती है तब आश्चर्य होना स्वाभाविक है । क्या यह मानना सही है ? शरीर ठोस कहां है ? यदि शरीर ठोस होता तो सर्दी उसके भीतर कैसे प्रवेश कर लेती । गर्मी कैसे अन्दर जाती ? पसीना भीतर से बाहर कैसे आता ? दूसरी वस्तुओं का प्रभाव, भीतर कैसे जाता ? इतनी सारी वस्तुओं का संक्रमण कैसे होता है ? शरीर ठोस नहीं है । विज्ञान के छात्र जानते हैं कि विश्व के सभी पदार्थों को कूट-पीटकर यदि एक गोली बनाई जाए तो वह एक छोटी-सी ही गोली बन पाएगी ।
अतः ठोसता बहुत कम है, पोल ही पोल है । हमारा शरीर पुद्गलों का पिंड है। एक-दूसरे परमाणु के बीच इतना व्यवधान है कि हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते । शरीर असंख्य परमाणु का पिंड है। एक-एक परमाणु के बीच बहुत बड़ा व्यवधान होता है । इसका साक्षात् अनुभव हमें शरीर प्रेक्षा से प्राप्त होता है । शरीर प्रेक्षा का अभ्यास पुष्ट होने पर शरीर ठोस होने की भ्रांति टूट जाती है । हमें परमाणु- परमाणु के बीच रही विरलता का अनुभव होने लगता है । हमें एक-एक कण अलग-अलग दीखने लगेगा | जब हम एक-एक कोशिका को पृथक्-पृथक् देखने का अभ्यास करेंगे तो शरीर की ठोसता की भ्रांति मिट जाएगी। हमें लगेगा कि शरीर रुई के पुंज जैसा है, समुद्र के फेन जैसा है । यदि यह विरलता की अनुभूति भर जाती है और प्रत्येक कोशिका पर हमारा ध्यान होने लगता है तब समुदाय या घनत्व या एकत्व की बात टूट जाती है । इसके टूटते आप आ जाता है । हल्कापन आते ही शरीर ऊपर उठ
ही लघुत्व अपनेजाता है, अधर:
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