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किसने कहा मन चंचल है
कर रहा था । एक बच्चा खेल रहा था। धूप थी । परछाई में बच्चे ने अपनी चोटी देखी । वह उसे पकड़ने दौड़ा । ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ता, परछाई भी आगे बढ़ जाती। इधर-उधर दौड़ता रहा । चोटी पकड़ में नहीं आयी। एक समझदार आदमी ने कहा-"बच्चे ! परेशान क्यों हो रहे हो ? चोटी ऐसे हाथ नहीं आएगी । तुम अपना हाथ अपने सिर पर रखो, चोटी पकड़ में आ जाएगी।" बच्चे ने हाथ उठाया। चोटी पर रखा। अब उसने परछाई में देखा कि चोटी हाथ में आ गई है। __ मन भी परछाई की चोटी है । हम उसे जितनी बार पकड़ने का प्रयत्न करेंगे; वह आगे से आगे भागता चला जाएगा। मन को वश में करने का प्रयत्न करेंगे, वह आगे से आगे भागता चला जाएगा । मन को वश में करने का प्रयत्न करते हैं तो मन दूर भागता जाता है। मन को स्थिर करने का प्रयत्न करते हैं तो मन और अधिक चंचल होता है । न जाने कितने लोगों ने मन को वश में करने का प्रयत्न किया, पर मन कभी उनके वश में नहीं आया। इस चोटी को पकड़ने का प्रयत्न किया पर यह चोटी कभी पकड़ में नहीं आई । इन व्यर्थ प्रयत्नों से घबराकर हजारों-हजारों व्यक्ति निराश होकर मन को वश में करने की बात ही भुला बैठे हैं। वे यह धारणा बना चुके हैं कि मन को वश में नहीं किया जा सकता।
कुछेक मनोवैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि मन को पांच सेकेण्ड से अधिक स्थिर नहीं किया जा सकता । उसका स्वभाव ही है चंचलता । स्वभाव को कैसे बदला जा सकता है ?
___ मनोवैज्ञानिकों की यह बात सही है किन्तु योग के आचार्यों ने मन को वश में करने का एक उपाय भी बताया है । वह उपाय है-श्वास । श्वास को पकड़ते ही मन पकड़ में आ जाता है । तब मन इतना सरल, सीधा हो जाता है कि उसकी चंचलता मिट जाती है।
इसीलिए हमने इस प्रक्रिया में श्वास को आलंबन बनाया है। यह श्वास वह यात्री है जो बाहर की यात्रा भी करता है और भीतर की यात्रा “भी करता है। यह वह दीप है जो भीतर को भी प्रकाशित करता है और बाहर को भी प्रकाशित करता है । यदि हम भीतर की यात्रा करना चाहें तो हमारे पास एकमात्र उपाय है कि हम मन को श्वास के रथ पर चढ़ा दें और उसके साथ-साथ भीतर चले जाएं । हमारी अन्तर्यात्रा प्रारंभ हो जाएगी। हम अन्तर्मुखी हो जाएंगे। हम आध्यात्मिक बन जाएंगे।
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