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किसने कहा मन चंचल है
धारा चलती रही।
दर्शन की दूसरी विचारधारा ने इससे आगे बढ़कर कहा-सत्य अतीन्द्रियगम्य भी है । जो दीखता है वही सत्य नहीं है, जो नहीं दीखता वह भी सत्य है । इन्द्रियों से परे भी सत्य का अस्तित्व है । उसका साक्षात्कार इन्द्रियों से नहीं होता । वह अतीन्द्रियगम्य होता है । हेतु और तर्क उसके क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते । वह अहेतुगम्य और अतर्कगम्य होता है । फिर एक प्रश्न आया कि अतीन्द्रियगम्य को कैसे जाना जा सकता है ? उसके साधन क्या हैं ? इस प्रश्न के समाधान में कहा गया कि जो अतीन्द्रिय द्रष्टा ऋषि हैं, जिनकी अतीन्द्रिय शक्ति विकसित हो चुकी है, जिन्होंने सूक्ष्म सत्य का साक्षात् कर लिया है, उनके कथन के द्वारा ही उस सूक्ष्म सत्य को जाना जा सकता है।
भौतिक जगत् में भी सारे स्थूल पदार्थों को हम इन इन्द्रियों से कहां देख या जान पाते हैं ? कुछ स्थूल पदार्थों को हम देख लेते हैं, जान लेते हैं, किन्तु ऐसे अनन्त स्थूल पदार्थ हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते, जान नहीं पाते। भौतिकी वैज्ञानिकों ने इनका देखने के लिए सूक्ष्म उपकरणों का निर्माण किया और उन उपकरणों ने स्थूल से कुछ सूक्ष्म पदार्थों को देखने का रास्ता खोल दिया।
__ शरीर के भीतर हम इन स्थूल आंखों से नहीं झांक सकते। एक्सरे का आविष्कार हुआ । शरीर की अतल गहराइयों तक उसकी पहुंच हुई और आज शरीर के भीतर हम अणु-अणु में झांक सकते हैं । एक्सरे भी एक प्रकार से अतीन्द्रिय ही है । जो बात इन्द्रियों द्वारा नहीं जानी जाती वह इन सूक्ष्म उपकरणों द्वारा जान ली जाती है।
हमारा यह शरीर स्थूल है। किन्तु इसमें भी गजब की सूक्ष्मता है। हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर का केवल दो प्रतिशत भाग है। किन्तु इस छोटे-से मस्तिष्क में एक खरब 'न्यूरॉन्स' है। ये साद् 'न्यूरॉन्स' स्वतन्त्र हैं। प्रत्येक की स्वतंत्र इकाई है । सबका स्वतंत्र अस्तित्व है।
इस शरीर में साठ खरब कोशिकाएं हैं । प्रत्येक कोशिका अपनाअपना काम करती है, अपनी विद्युत् पैदा करती है। प्रतिक्षण कोशिकाएं नष्ट हो रही हैं, नयी कोशिकाओं का निर्माण हो रहा है। प्रत्येक कोशिका में अनेक संस्कार संगृहीत हैं। इनमें सूक्ष्म शरीर से उपलब्ध संस्कार प्रतिबिम्बित हो रहे हैं। सभी प्रकार के संस्कारों को वहन करना इनका
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