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________________ जाता है । यह ईश्वर ही सृष्टि का कारण है। ईश्वर से सर्वप्रथम आकाश उत्पन्न होता है। आकाश एक, अनन्त, लघु-सूक्ष्म तथा सर्वव्यापक है। आकांश से क्रमशः स्थूल तत्त्वों का उद्भव होता है । इनके उद्भव का वेदान्त दर्शन में विस्तार से उल्लेख प्राप्त है किंतु प्रस्तुत प्रसंग में शरीर से सम्बन्धित विषय पर विमर्श करना काम्य है। वेदान्त दर्शन के अनुसार पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां, पंचप्राण मन और बुद्धि इन सत्रह अवयवों के समूह से सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है । ३७ इन अवयवों का पृथक्-पृथक् समूह कोश कहलाता है। सूक्ष्म शरीर मनोमय, प्राणमय तथा विज्ञानमय कोश से युक्त होने से इसमें ज्ञान, क्रिया तथा इच्छा इन तीनों शक्तियों का योग रहता है। इन तीनों कोशों में विज्ञानमय कोश ज्ञानशक्ति सम्पन्न कर्तारूप है। मनोमयकोश इच्छाशक्ति युक्त होने के करण रूप तथा प्राणमय कोश क्रियाशक्ति सम्पन्न होने से कार्यरूप है। पृथक्-पृथक् तीनों ही कोशों का अपनी-अपनी योग्यता के अनुरूप ही कर्ता, करण एवं कार्यरूप में विभाग किया गया है, ये तीनों मिलकर सूक्ष्मशरीर कहलाते हैं । कारणावस्था में केवल आनन्दमय कोश रहता है। पांच ज्ञानेन्द्रियां और बुद्धि का समूह विज्ञानमय कोश कहलाता है। इस कोश से ही जीव में ज्ञान शक्ति का प्रादुर्भाव होता है । मन के साथ ज्ञानेन्द्रियों के संयुक्त होने से इसे मनोमय कोश कहा जाता है ।" यह कोश इच्छा शक्ति से युक्त होता है। पंचप्राण सहित कर्मेन्द्रियों के समूह को प्राणमय कोश की अभिधा प्राप्त है ।" इसमें क्रियाशीलता का प्राधान्य है । जीव ज्ञान, इच्छा एवं क्रिया शक्ति से संचालित होकर व्यावहारिक कार्यों का कर्ता बनता है । 1 कारणशरीर वेदान्त दर्शन के अनुसार ईश्वर की समष्टि अर्थात् समूहोपाधि सबका मूलभूत कारण होने से कारण शरीर है ।४२ सांख्य आदि दार्शनिकों के विचारानुसार केवल सूक्ष्म एवं स्थूल ये दो शरीर माने गये हैं किन्तु वेदान्त सूक्ष्म एवं स्थूल शरीर के विलय का स्थान कारण शरीर को मानता है । स्थूलशरीर सृष्टि का चरम विकास स्थूल शरीर है। स्थूल शरीर का निर्माण आकाश आदि पंचीकृत स्थूलभूतों से होता है। यह शरीर ही व्यावहारिक रूप से जन्म-मरण २१२ • व्रात्य दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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