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________________ दूरदर्शन और अन्तर्दर्शन संस्कृत साहित्य में काव्यों अथवा नाटकों के दो भाग किये गये हैं। एक है-श्रव्यकाव्य और दूसरा है दृश्यकाव्य। श्रव्यकाव्य केवल सुनने का काव्य होता है। नाटक, अभिनय आदि दृश्यकाव्य की कोटि में आते हैं। नाटक के प्रति प्राचीनकाल से ही आकर्षण रहा है। समय-समय पर विभिन्न नाटकों की रचनाएं हुईं और नाटक खेले भी गये। दृश्यकाव्य विकसित होते-होते आज टी. वी. तक पहुंच गया है। अनिवार्यता टी. वी. की आज सबसे बड़ा दृश्यकाव्य या नाटक बन गया है टेलीविजन । दूरदर्शन के प्रति काफी आकर्षण पैदा हुआ है। जो भी समर्थ परिवार हैं, उनमें टी. वी. एक अनिवार्यता हो गयी है। आज शायद ही कोई खाता-पीता परिवार हो, जिसके पास टी. वी. न हो। ऐसे लोग बहुत कम हैं, जिनका दिन-रात के मध्य दो-चार घंटे का समय उसमें न लगता हो। कुछ लोगों का मानना है कि इससे बहुत लाभ हुआ है, विकास हुआ है। कुछ लोग कहते हैं कि विकास के साथ-साथ टी. वी. अनेक समस्याओं का जनक भी बना है। बहुत सारी समस्याएं पैदा की हैं टेलीविजन ने। दो-तीन वर्ष पूर्व ब्रिटेन में इसके खिलाफ एक आन्दोलन जैसा चला। आन्दोलनकारी कह रहे थे-टी.वी. को बन्द कर दिया जाए क्योंकि इससे बच्चों की पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई है। उनके दायित्वबोध और कर्तव्यबोध का निरन्तर ह्रास होता जा रहा है। आज सारी स्थितियां बदल गयी हैं। दो-चार दिन के पहले की घटना है। एक मुनि गोचरी के लिए जा रहे थे। परिवार के बुजुर्ग ने कहा- 'महाराज ! एक घंटा बाद आएं। अभी तो सब टी. वी. देख रहे हैं। भिक्षा देने वाला कोई मिलेगा ही नहीं।' दूरदर्शन और अन्तर्दर्शन / ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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