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करते हैं ? प्राणायाम करते हैं ? नहीं, शायद आप इसे जरूरी नहीं मानते। आसन और व्यायाम के बिना शरीर को उचित मात्रा में रक्त उपलब्ध नहीं होता। हर अवयव तक रक्त नहीं पहुंच पाता। आसन, व्यायाम और प्राणायाम-ये तीनों शरीर को स्वस्थ रखने की अनिवार्य अपेक्षाएं हैं। पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी बयांसी वर्ष की अवस्था में हैं, फिर भी प्रतिदिन आसन करते हैं। इसीलिए आप प्रातः चार बजे से रात दस बजे तक अनवरत श्रम करते हैं। श्रम और व्यायाम-ये शरीर में नयी ताजगी भरते हैं।
दिनचर्या स्वास्थ्य के लिए यह अपेक्षित है कि अपनी दिनचर्या को नियमित बनाकर श्रम को उसमें पर्याप्त स्थान दें। यदि सवेरे देर से उठेंगे तो हर काम में जल्दी होगी। अनियमित दिनचर्या का अर्थ है स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही।
आदमी बहुत साधन जुटाता है सुख के लिए, किन्तु सुख मिलता नहीं। एक सूत्र दिया गया-‘धन होता है आदमी के लिए।' किन्तु आज की जीवनशैली के संदर्भ में यह सूत्र भी उलट गया है। आज का सूत्र है-'आदमी होता है धन के लिए।' यह आज की स्थिति है। इसी का नाम मूर्छा है। प्रामाणिक प्रवर श्री सुमेरमलजी दूगड़ एक मार्मिक बात कहा करते थे-'आदमी शान्ति की इच्छा करता है, किन्तु इच्छा की शान्ति करना नहीं जानता। जब तक इच्छा की शान्ति नहीं होती है, तब तक शान्ति की इच्छा बिल्कुल अर्थहीन बन जाती है।'
जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होगा, उसे धर्म के प्रति जागरूक होना ही होगा। स्वास्थ्य के लिए घूमना, व्यायाम करना, आसन करना आदि बहुत जरूरी है। इसमें दिन भर में एक घंटा का समय लगाना बहुत जरूरी है। जिन लोगों ने इसके महत्त्व को समझा है, वे आर्थिक दृष्टि से भी सफल हुए हैं। जापान में इसके प्रति बहुत जागरूकता है कि कैसे स्वास्थ्य को ठीक रखा जाए। इस जागरूकता ने आर्थिक दृष्टि से भी वहां जागरूकता पैदा की है। जो भी चिंतनशील और विचारशील
धर्म और स्वास्थ्य / ६३
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