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आभार किस बात का ? सबसे पहले बुरे विचारों को रोकने का अभ्यास करना चाहिए। आदमी बहुत बुरी बातें सोचता है, बुरा चिंतन करता है। एक आदमी डॉक्टर के पास गया। हाथ जोड़कर बोला-'डॉक्टर साहब, नमस्कार।' डॉक्टर ने उसकी ओर देखा और आने का कारण पूछा। उसने कहा-'बस ऐसे ही आभार व्यक्त करने चला आया। डॉक्टर ने कहा- 'मैंने तो तुम्हें कभी देखा ही नहीं, कभी तुम्हारी कोई चिकित्सा भी नहीं की, तुम्हें पहचानता भी नहीं, फिर आभार किस बात का ? वह बोला- 'आपने मेरी नहीं, किन्तु मेरे चाचा की चिकित्सा की है। वे जल्दी ही मर गये। उनकी सारी संपत्ति मुझे ही मिली है। आपने मेरा कल्याण कर दिया। इसलिए आभार तो व्यक्त करूंगा ही।'
अमंगल विचार न आएं अमंगल विचार, नितान्त स्वार्थपरक विचार, दूसरे का अनिष्ट करने वाले विचार आते हैं, उन्हें रोकना है। ध्यान करने वाले व्यक्ति में इस प्रकार की चेतना जागनी चाहिए, जिससे बुरे विचार न आएं। यह ध्यान की पहली सफलता है-बुरे विचारों पर अंकुश लग जाना। जितने निषेधात्मक विचार हैं, बुरे विचार हैं, उनके निकलने का दरवाजा बन्द हो जाए। इस बात के प्रति जागरूक होना है, चित्त की निर्मलता को पाना है। निर्मल चित्त में बुरे विचार प्रस्फुटित ही नहीं होते। अनावश्यक विचार न आएं दूसरी बात है-अनावश्यक विचार न आएं। विचार का हमें विकास करना है, चिंतन को बहुत आगे बढ़ाना है, चिंतनशील और विचारशील बनना है। यदि ध्यान करने वाला व्यक्ति चिंतनशील न रहे तो फिर ध्यान के कोई पास ही नहीं फटकेगा। ध्यान किया और विचार समाप्त हो गया, चिंतन समाप्त हो गया, इसलिए अब दुनिया के किसी काम का नहीं रहा। यदि ऐसा होता है तो कोई ध्यान करने क्यों आएगा ? हमें चिंतनशुन्य नहीं होना है, विचार से खाली नहीं होना है, किन्तु अनावश्यक विचार से मुक्त होना है। दिन भर जो बिना सिर-पैर के अनावश्यक विचार आते रहते हैं,
विचार को देखना सीखें / १५
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