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मन क्यों टूटता है ? कमजोर कल्पनाओं के कारण मन टूटता है। बुरी कल्पनाएं मन को बहुत विकृत कर देती हैं। भय मन को बहुत कमजोर बनाता है। भय एक बीमारी है, जिसे मानसिक चिकित्सक ‘फोबिया' कहते हैं। फोबिया अर्थात् निरंतर बिना कारण डरते रहना। मैंने देखा है, सुना है-स्त्रियां चूहे से बहुत डरती हैं। वे जानती हैं कि चूहा उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता, किन्तु चूहे को देखते ही वे भयभीत हो जाती हैं। बिल्ली से डरती हैं। यह एक मानसिक बीमारी है। इस बीमारी से मन बहुत कमजोर बन जाता है। जब मन कमजोर है तब फिर आप शान्ति की बात कैसे करेंगे ? शान्ति कोई ऐसी चीज तो नहीं है कि कमजोर और अशान्त व्यक्ति को सीधे पकड़ा दी जाये। मूर्त वस्तु के अभाव की पूर्ति की जा सकती है, किन्तु शान्ति अमूर्त चीज है, उसे सीधा कोई किसी को हस्तान्तरित नहीं कर सकता। चाहे कितना ही बड़ा साधक हो, योगी हो, महात्मा हो, यह नहीं कह सकता कि यह लो, मैं तुम्हें शान्ति देता हूं। वह शान्ति का उपाय बता सकता है, किन्तु प्रत्यक्षतः शान्ति कोई किसी को दे नहीं सकता। शक्ति का विकास स्वयं में करना होगा, तभी शान्ति आयेगी। इसीलिए जो बातें मन को दुर्बल बनाने वाली हैं, कमजोर बनाने वाली हैं, उन बातों से बचने का अभ्यास करना होगा। यदि हम उनसे बचेंगे तो अशान्ति वाली बात सामने नहीं आयेगी। जब मन शान्त होता है, तब वह अनेक कठिनाइयों, विषमताओं और उपद्रवों को झेल लेता है। यदि कपड़ा नया है, मजबूत है तो वह ऊपर से गिरने वाले पत्थर को झेल लेता है। यदि वह जीर्ण-शीर्ण और पुराना है तो मामूली-सा दबाव भी झेल नहीं पायेगा। हमारा मन अगर मजबूत है तो अपने आस-पास होने वाली तमाम घटनाओं को हम झेल लेंगे। मन कमजोर है तो थोड़ी-सी बात आते ही इतने अशान्त और कमजोर हो जाएंगे कि जीना दूभर हो जायेगा। दुःख देता है दुर्बल मन वस्तुतः कोई घटना दुःख नहीं देती है, दुःख देता है हमारा कमजोर और दुर्बल मन। यह महत्त्व की बात है कि घटना से दुःख नहीं होता। दुःख होता है अपने मन की कमजोरी से। मन कमजोर है तो राई जितनी छोटी १६२ / विचार को बदलना सीखें
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