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जानते, वे शान्त सहवास का आनंद नहीं ले पाते । शान्तिपूर्ण पारिवारिक जीवन का सूत्र है - सहिष्णुता । जितनी विद्याएं और कलाएं हैं, उन सबमें अच्छी कला है सहिष्णुता । जो बहुत कुछ पढ़ जाने पर भी इस कला को नहीं पढ़ता, नहीं सीखता, वह शान्ति के साथ कभी नहीं जी सकता ।
विनय और वात्सल्य
शान्त-सहवास का पांचवां सूत्र है - विनय और वात्सल्य । जैन धर्म में विनय को बहुत महत्त्व दिया गया । आज का पढ़ा-लिखा आदमी तो शायद ऐसा सोचता है कि विनम्रता तो गुलामी है । उसका यह चिंतन अहंकार को बढ़ा रहा है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक धर्म और समाज में विनय का महत्त्व रहा है । इसीलिए लिखा गया - 'विद्या ददाति विनयम् ।' विद्या विनय देती है। पता नहीं आज की विद्या क्या देती है ? वर्तमान युग को देखकर यह कहा जा सकता है - 'विद्या ददाति अविनयम् - विद्या अविनय देती है । इससे भी आगे बढ़ें तो विद्या प्रिंसिपल को पीटने का संस्कार देती है, बन्दी बनाने की भावना उत्पन्न करती है और कभी-कभी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर को भी ऐसे कटघरे में खड़े कर देती है कि उसका उस कटघरे के बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाता है । आज की विद्या क्या यही नहीं दे रही है ? हमारी परंपरा विनय की रही है । यह परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है । विनय भारतीय संस्कृति का प्राणतत्त्व रहा है किन्तु आज यह बात भी विस्मृत होती जा रही है । जिस परिवार में यह विनय की परंपरा नहीं होती, उसमें शान्तिपूर्ण जीवन नहीं हो सकता ।
विनय का दूसरा पहलू
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बड़ों के प्रति विनय करना एक पक्षीय बात है । उसका दूसरा पहलू है वात्सल्य । छोटों के प्रति वात्सल्यपूर्ण व्यवहार करना । यह विनय और वात्सल्य एक जोड़ा है। ये दोनों हों, तभी काम चलता है । एक विनय करे और दूसरा वात्सल्य न दे तो विनय भी रूठ जाता है । वात्सल्य मिलता रहे और विनय बढ़ता रहे तो पारिवारिक जीवन में शान्ति का संचार बना रहता है । शान्तिपूर्ण जीवन के ये पांच सूत्र अनेकान्त अथवा सापेक्ष दर्शन से फलित होते हैं । इन पांच सूत्रों पर मनन किया जाए, बहुत गंभीरता से मनन किया जाए
१५६ / विचार को बदलना सीखें
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