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हिमकुण्ड और अग्निकुण्ड दोनों आदमी में
अमेरिकी परामनोवैज्ञानिक स्टीवेंसन ने पुनर्जन्म की एक घटना लिखी है-एक व्यक्ति ने दूसरे के पचास हजार रुपये चुरा लिये। उस व्यक्ति को बड़ा सदमा लगा। उसने कहा-भाई ! मेरे रुपये लौटा दो, रुपये चुराना अच्छी बात नहीं है। बहुत कहने-सुनने पर भी उस व्यक्ति ने उसके रुपये उसे नहीं लौटाये। उस व्यक्ति ने रुपये चुराने वाले से कहा-'इसका फल तुम्हें भुगतना पड़ेगा। जिसके रुपये चुराए गए थे, उसकी पीड़ा बढ़ती गई
और कुछ दिन बाद इसी दुःख में उसकी मृत्यु हो गयी। ठीक नौ महीने बाद उस चुराने वाले आदमी के घर एक लड़का पैदा हुआ। कुछ दिन बाद ही वह बीमारी से आक्रान्त हो गया। निरन्तर अस्वस्थता ने उस सेठ को बहुत चिंतित कर दिया। बहुत इलाज कराया, किंतु लड़का ठीक नहीं हुआ। जिस दिन इलाज में पूरे पचास हजार रुपये लग गये, उसी दिन लड़का चल बसा। उस छोटे-से बच्चे ने बिल्कुल स्पष्ट कहा-'मैंने अपने रुपये वसूल कर लिये। मेरा तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं है। मैं जा रहा हूं।' वह यह कहकर चल बसा।
उत्तरदायित्व का सिद्धान्त इस प्रकार की न जाने कितनी घटनाएं होती हैं। किसी को कष्ट होता है कि पत्नी चली गयी। प्रश्न यह है कि उसका उत्तरदायी कौन है ? यह घटना क्यों घटित हुई ? उसके लिए कोई जिम्मेदार तो होगा ही। जब वर्तमान में कोई घटना घटित होती है, आदमी को बड़ा कष्ट होता है, पर आदमी यह नहीं सोचता कि अतीत में उसने क्या किया है ? आखिर उत्तरदायित्व आदमी को अनुभव करना होगा। आदमी काम करते समय सोचता नहीं है अथवा बहुत कम सोचता है। वह यह नहीं सोचता-मैं
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