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जीवन की नई व्याख्या
भगवान् महावीर ने दो नय बतलाए-निश्चयनय और व्यवहारनय। निश्चयनय वास्तविक सत्य है। हम क्या करें, किसका उपयोग करें ? इस प्रश्न के उत्तर में बहुत संक्षेप में कहा जा सकता है-हम निश्चय में रहें
और व्यवहार में जीवन चलाएं। रहना अपने भीतर और व्यवहार चलाना बाहर। जो आदमी भीतर में नहीं रहता, कोरा बाहर ही बाहर रहता है, वह बहुत सारी उलझनें पैदा कर लेता है। जो केवल भीतर रहे, बाहर न रहे, वह जीवन जी नहीं सकता। हमारे सामने ये दो आयाम हैं। भीतर में रहना यानी वस्तुसत्य में रहना सचाई को पाने के लिए जरूरी है। व्यवहार में रहना जीवन के लिए जरूरी है। सत्य जीते जी पाया जा सकता है, मरने के बाद कोई क्या पायेगा ? हमें जीना भी है और सत्य को भी पाना है। दोनों बहुत जरूरी हैं। दोनों के लिए दो मार्ग स्पष्ट हैं।
त्रिमूर्ति है व्यवहार हमारा व्यवहार किससे चलता है ? इस प्रश्न के उत्तर में चिंतन किया गया। चिंतन के बाद निर्णय किया गया-मनुष्य का व्यवहार वाणी के द्वारा संपादित है। भाषा के द्वारा वह सारे कार्यक्रमों को चला रहा है। भाषा न होती तो हमारा व्यवहार बहुत सिमट कर रह जाता, बहुत संकुचित हो जाता। भाषा है इसलिए हमारे व्यवहार का बहुत विस्तार हुआ है।
व्यवहार के तीन रूप हैं-प्रवृत्ति, निवृत्ति और उपेक्षा। मनुष्य प्रवृत्ति करता है, निवृत्ति करता है और उपेक्षा करता है। यह त्रिमूर्ति व्यवहार है। हमारा व्यवहार सदा एक प्रकार का ही नहीं होता, प्रश्न हो सकता है-व्यवहार के ये तीन रूप क्यों ? एक ही प्रकार क्यों नहीं ? उसका आधार तीन हेतु है। कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो हेय हैं, छोड़ने योग्य हैं। कुछ
जीवन की नई व्याख्या / १
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