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जीवन की शैली कैसी हो ?
आयुर्वेद का उद्देश्य रोग की चिकित्सा करना ही नहीं है, रोग न हो, उसकी व्यवस्था करना भी उसका उद्देश्य है। आयुर्विज्ञान ने भी रोग की प्रतिरोधात्मक व्यवस्था पर बहत ध्यान केन्द्रित किया है। अनेक चिकित्सा-पद्धतियां, अनेक
औषधियों के वर्ग, फिर भी रोग बढ़ रहे हैं। चिन्तन और अनुसंधान के बाद निष्कर्ष यह निकला कि जीवनशैली अच्छी नहीं है।
वर्तमान जीवनशैली वर्तमान जीवनशैली के प्रमुख तत्त्व हैं-स्पर्धा, उतावलापन, अधीरता, असहिष्णुता और असंयम। ये सब अंतःस्रावी ग्रंथियों के स्राव को असंतुलित करते हैं, रोग को निमंत्रण मिल जाता है। हृदय रोग के विशेषज्ञ कहते हैं-वर्तमान जीवनशैली बदलनी चाहिए। ___मानसिक असंतुलन, चंचलता और निषेधात्मक दृष्टिकोण बहुत बढ़ा है। फलतः मानसिक रोग बहुत बढ़े हैं। मनश्चिकित्सक कहते हैंमानसिक स्वास्थ्य के लिए वर्तमान जीवनशैली में परिवर्तन होना आवश्यक है।
हिंसा, आतंक, पारिवारिक संघर्ष, कलह, तलाक, दहेज से जुड़ी हिंसा, भ्रूण हत्या आदि अमानवीय-समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। धर्म के तत्त्ववेत्ता कहते हैं-ये सब धर्म-शून्य जीवनशैली के परिणाम हैं इसलिए वर्तमान जीवनशैली बदलनी चाहिए।
क्षेत्र अनेक और सबका स्वर एक है कि जीवनशैली बदले। इस अव्यक्त या व्यक्त स्वर को ध्यान में रखकर आचार्यश्री तुलसी ने जैन जीवनशैली का सुव्यवस्थित रूप जनता के सामने प्रस्तुत किया। उसके केन्द्र में जैन-धर्म का अनुयायी है पर परिधि में विश्व का प्रत्येक व्यक्ति। वह शैली स्वस्थ जीवन की शैली है। उसके सूत्र शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य
६६ / विचार को बदलना सीखें
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