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महाप्रज्ञ का मौलिक सृजन देता है एक नया जीवन-दर्शन संक्रमण का यह युग बन जायेगा सतयुग अमंगल विचारों से अनावश्यक विचारों से अर्थहीन विचारों से यदि हम मुक्ति पाएं विधायक भाव बढ़ाएं पवित्र विचारों को जीयें तो आयेगा एक दिन निर्विचारता का क्षण। यह विचारातीत स्थिति देगी एक नई विभूति जागेगी स्वयं को पाने की ललक मिलेगी अपने अस्तित्व की झलक समस्या की तमिस्रा में समाधान की दीपशिखा जल उठेगी पाठक के हृदय में और उसे पहुंचाएगी अंतःसदय में।
जैन विश्व भारती लाडनूं १२ जनवरी १९६६
-मुनि धनंजय कुमार
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