________________
स्वकथ्य
I
जैन तत्त्वज्ञान जितना गंभीर है, उतना ही वैज्ञानिक है- यह वरिष्ठ विद्वानों का अभिमत है । जैन तत्त्वज्ञान में बायोलॉजी का जितना सूक्ष्म विवेचन है, अन्यत्र दुर्लभ है। जैन तत्त्वज्ञान के उत्स तीर्थंकर रहे हैं । वे अतीन्द्रियज्ञानी थे, केवलज्ञानी थे । उनके द्वारा निरूपित तत्त्वज्ञान उनकी सर्वज्ञता का संवादी प्रमाण है । उन्होंने एकेन्द्रिय जीवों से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों का विवेचन किया। पृथ्वीकायिक जीवों से लेकर कायिक जीवों तक की जानकारी दी। एक समय था, जब जैन आगमों में निरूपित तथ्य विज्ञान के क्षेत्र में उपेक्षित रह जाते थे । वर्तमान में उन तथ्यों पर रिसर्च होती है और एक-एक कर अनेक बातें वैज्ञानिकों द्वारा मान्य की जा रही हैं ।
1
I
जैन आगम तत्त्वज्ञान के अखूट खजाने हैं । अर्हत्वाणी का सीधा सम्बन्ध तीर्थंकरों से है । वे देशना देते हैं, गणधर उन्हें गूंथ लेते हैं। यह काम प्राकृत भाषा में होता है । प्राकृत भाषा में निबद्ध आगमों पर प्राकृत और संस्कृत भाषा में व्याख्याएं लिखी गई । हिन्दी और अंग्रेजी में भी यत्र-तत्र छोटी-बड़ी व्याख्याएं लिखी गई । प्राकृत और संस्कृत भाषा को जानने वाले लोग कम हैं। एक अपेक्षा का अनुभव हुआ कि हिन्दी भाषा में भी जैन तत्त्वज्ञान पर कुछ लिखा जाना चाहिए। 'जैनतत्त्वविद्या' उस अपेक्षा की पूर्ति में उठा हुआ एक कदम है।
पचीस बोल का थोकड़ा बहुत पहले से चलता था । उसकी व्याख्या जीव-अजीव नामक पुस्तक में उपलब्ध है। पूज्य गुरुदेव कालूगणी की जन्मशताब्दी के अवसर पर सौ बोलों का संकलन तैयार किया गया। जो 'कालू तत्त्वशतक' के नाम से सामने आया । उस पर व्याख्या की आवश्यकता हुई तो 'जैनतत्त्वविद्या' की पुस्तिका तैयार हो गई।
'कालू तत्त्वशतक' चार वर्गों में विभक्त है । प्रत्येक वर्ग के पचीस-पचीस बोल हैं। प्रथम वर्ग में जीव तत्त्व का विवेचन है। दूसरे वर्ग में अजीव तत्त्व को विस्तार से समझाया गया है। तीसरे वर्ग में नौ तत्त्वों का विवेचन हैं और चौथे वर्ग में दार्शनिक तथ्यों का संकलन किया है। प्रस्तुत कृति में एक ओर जीव, अजीव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org