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२०२ / जैनतत्त्वविद्या १२. मतिज्ञान (अश्रुतनिश्रित मति) के चार प्रकार हैं
१. औत्पत्तिकी बुद्धि ३. कार्मिकी बुद्धि
२. वैनयिकी बुद्धि ४. पारिणामिकी बुद्धि १३. श्रुतज्ञान के चौदह प्रकार हैं१. अक्षर श्रुत
८. अनादिश्रुत २. अनक्षर श्रुत
९. सपर्यवसितश्रुत ३. संज्ञिश्रुत
१०. अपर्यवसितश्रुत ४. असंज्ञिश्रुत
११. गमिकश्रुत ५. सम्यक्श्रुत
१२. अगमिकश्रुत ६. मिथ्याश्रुत
१३. अंगप्रविष्टश्रुत ७. सादिश्रुत
१४. अनंगप्रविष्टश्रुत १४. आगम के दो प्रकार हैं१. अंगप्रविष्ट
२. अंगबाह्य १५. अंगप्रविष्ट (द्वादशांगी) के बारह प्रकार हैं१. आचारांग
७. उपासकदशा २. सूत्रकृतांग
८. अन्तकृत्दशा ३. स्थानांग
९. अनुत्तरोपपातिकदशा ४. समवायांग
१०. प्रश्नव्याकरण ५. भगवती
११. विपाकश्रुत ६. ज्ञाताधर्मकथा
१२. दृष्टिवाद १६. अंगबाह्य (उपांग) के बारह प्रकार हैं१. औपपातिक
७. सूर्यप्रज्ञप्ति २. राजप्रश्नीय
८. कल्पिका (निरयावलिका) ३. जीवाजीवाभिगम ९. कल्पवतंसिका ४. प्रज्ञापना
१०. पुष्पिका ५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ११. पुष्पचूलिका ६. चन्द्रप्रज्ञप्ति
१२. वृष्णिदशा मूल चार हैं१. दशवैकालिक
३. नन्दी २. उत्तराध्ययन
४. अनुयोगद्वार
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