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________________ ज़ैनतत्त्वज्ञान अर्हत्-वाणी का अक्षय खजाना है। इसमें इतने गहरे तत्त्व भरे पड़े हैं, जिन्हें किसी अमूल्य रत्न से उपमित किया जा सकता है। इन रत्नों को वही व्यक्ति पा सकता है, जो उनकी गहराई तक पैठना जानता हो। 'जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ' कबीर के ये बोल एक शाश्वत सत्य का उद्घाटन करने वाले हैं। जैन दर्शन के गंभीर तत्त्वों को जानने-समझने के लिए प्राथमिक रूप से नौ तत्त्वों और छह द्रव्यों का ज्ञान आवश्यक है। प्राथमिक बोध के अभाव में तत्त्व को समझने की दृष्टि भी निर्मित नहीं होती। तात्त्विक बातों को याद कर लेने मात्र से तत्त्व का बोध नहीं होता। बोध के लिए विस्तार से जानने-समझने की जरूरत नहीं रहती है। प्रस्तुत पुस्तक 'जैनतत्त्वविद्या' में जैन तत्त्वों की विस्तार से व्याख्या की गई है। आशा है तत्त्वरसिक और जिज्ञासु 'जैनतत्त्वविद्या' की इस सोपान के सहारे आत्मविद्या के क्षेत्र में गतिशील बनेंगे । Jain Education International www.ininelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
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