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१९०/ जैनतत्त्वविद्या
घ्राण इन्द्रिय के दो विषय हैं१. सुगन्ध
२. दुर्गन्ध रसन इन्द्रिय के पांच प्रकार हैं१. तिक्त
४. अम्ल २. कटु
५. मधुर ३. कषाय स्पर्शन इन्द्रिय के आठ विषय हैं१. शीत ३. स्निग्ध ५. कर्कश ७. गुरु
२. उष्ण ४. रूक्ष ६. मृदु ८. लघु ६. कर्म के आठ प्रकार हैं१. ज्ञानावरणीय ३. वेदनीय ५. आयुष्य
७. गोत्र २. दर्शनावरणीय ४. मोहनीय ६. नाम ८. अन्तराय आठ कर्मों में चार घनघात्य प्रकृतियां एकान्त अशुभ हैं१. ज्ञानावरणीय
३. मोहनीय २. दर्शनावरणीय
४. अन्तराय आठ कर्मों में चार अघात्य प्रकृतियां शुभ-अशुभ दोनों हैं१. वेदनीय
____३. गोत्र २. नाम
४. आयुष्य ७. कर्म की इकतीस उत्तर प्रकृतियां हैं
ज्ञानावरणीय कर्म की पांच प्रकृतियां हैं१. मति ज्ञानावरण ४. मनःपर्यव ज्ञानावरण २. श्रुत ज्ञानावरण
५. केवल ज्ञानावरण ३. अवधि ज्ञानावरण दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियां हैं१. चक्षु दर्शनावरण ६. निद्रा-निद्रा २. अचक्षु दर्शनावरण ७. प्रचला ३. अवधि दर्शनावरण ८. प्रचला-प्रचला ४. केवल दर्शनावरण ९. स्त्यानर्द्धि ५. निद्रा
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